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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिव्यंजन १२८ अभिसार अभिव्यंजन-संज्ञा, पु. (सं० ) प्रकट | अभिषेक-संज्ञा, पु. (सं० ) जल से करना, प्रकाशित करना, सूचित करना, सिंचन, छिड़काव, ऊपर से जल डाल कर व्यक्त करना। स्नान, वाधा-शान्ति के लिये मंत्र पढ़ कर अभिव्यंजना- संज्ञा, स्त्री० (सं०) मनो- दूर्वा और कुश से जल छिड़कना, मार्जन, भावों के प्रगट करने की शक्ति, भावना ।। विधिपूर्वक मंत्र द्वारा अभिमंत्रित जल अभिव्यंजित-वि० (सं० ) प्रकाशित, | छिड़क कर राज-पद पर निर्वाचन, यज्ञादि प्रगटित, व्यक्त, सूचित । के पश्चात् शान्ति के लिये स्नान, शिवअभिव्यंज्य- वि० (सं० ) प्रकाशित करने | लिंग पर छेददार धड़े को रखकर पानी योग्य, व्यक्त करने के लायक । टपकाना। अभिव्यंजनीय-वि० (सं० ) प्रकाशनीय, यौ०-राज्याभिषेक- राज-तिलक । । प्रगट करने योग्य । अभिष्यंद-संज्ञा, पु० (सं० ) बहाव, स्राव, अभिव्यक्त-वि० ( सं० ) प्रकाशित, विज्ञा- आँख आना। पित, स्पष्ट किया हुआ, ज़ाहिर किया अभिसंधि-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) बंचना, हुआ। धोखा, कई आदमियों का मिलकर चुपचाप अभिव्यक्ति-संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) प्रकाशन, किसी काम के लिये सलाह करना, कुचक्र, स्पष्टीकरण, साक्षात्कार, सूचम और अप्रत्यक्ष षडयंत्र। कारण का कार्य में प्रत्यक्ष आविर्भाव, जैसे अभिसंघिता- संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) कलहंतबीज से अंकुर निकलना न्याय० ) विज्ञापन, | रिता नायिका, ( काव्य )। घोषणा, सूचना। अभिसंपाता-संज्ञा पु० (सं० ) अभिशाप. अभिशप्त-वि. (सं० ) शापित, जिसे संग्राम, क्रोध, मन्यु, रोष, रिस ( दे० )। शाप दिया गया हो, जिस पर मिथ्या दोष (दे० ) वि० अभिसंपाती। लगाया गया हो। अभिशाप-~संज्ञा, पु. (सं०) शाप, बद अभिसर-संज्ञा, पु० (सं० ) साथी, संगी, दुश्रा, मिथ्या दोषारोपण, क्रोध, दूषणारोप, सहचर, अनुचर, सहायक, मित्र, हितैषी। बुरा मानना, अनिष्ट प्रार्थना । संज्ञा, पु० अभिसरन-सहारा। अभिशापित-वि० (सं० ) अभिशप्त, अभिसरण-संज्ञा, पु० (सं० ) आगे जाना, शाप दिया हुआ, वि०-अभिशापक । समीप गमन, प्रिय से मिलने के लिये अभिषंग-संज्ञा पु० (सं० ) पराजय, निन्दा, जाना । श्राक्रोश, पराभव, कोसना, मिथ्यापवाद, अभिसरन- (दे० ) निकट जाना। झूठा दोषारोपण, दृढ़ मिलाप, आलिंगन, अभिसरना*-- अ० क्रि० दे० (सं० शपथ, कसम, भूत-प्रेत का आवेश, शोक ।। अभिसरण ) संचरण करना, जाना, किसी अभिषध-संज्ञा, पु० (सं० ) यज्ञ-स्नान, वांछित या इष्ट स्थान को जाना संकेत मद्योत्पादक वस्तु, सोमलता-पान। स्थान पर प्रिय से मिलने के लिये जाना । अभिषिक्त-वि० ( सं० ) जिसका अभिषेक | अभिसारना-अ. क्रि० दे० अभिसार किया गया हो, कृताभिषेक, वाधा-शान्ति कराना, अपने पिय के निकट जाना । के लिये जिस पर मंत्र पढ़कर दूर्वा और अभिसार-संज्ञा, पु. (सं० ) सहाय. कुश से जल छिड़का गया हो, राज-पद पर । सहारा, युद्ध नायिका या नायक का संकेतनिर्वाचित । स्त्री० अभिषिक्ता-जल-सिंचिता।। स्थान को मिलने के लिये जाना । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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