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मरज, मरज
१३७२
मरना
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मरज, मरज-संज्ञा, पु० दे० ( अ. मर्ज़) मरदन* --संज्ञा, पु. ० (सं० मर्दन )
रोग, बीमारी, बुरी आदत या लत, कुटेव, मलना, मालिश करना, कुचलना, रौंदना, बुरा स्वभाव । वि०, संज्ञा, पुर. -मरीज। नाश करना, मरद क' व० २.! " मरज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की '...- मरदना स० क्रि० दे० (सं० मर्दन ) स्फु० ।
मलना नष्ट करना, मपलना, मोड़ना. धना मरजाद, मरजादा .... संज्ञा, स्त्री० (सं० कुचलना। मर्थ्यादा ) सीमा, हद, प्रतिष्ठा, महत्ता, सरनिया - एंज्ञा, '१० दे० ( हि० मर्दना ) महत्व, नियम, परिपाटी, प्रणाली, प्रार, देह में लेल मलने वाला दास । रीति । "राखी मरजाद पाप-पुन्य की बरदानगी, गनिमी----संज्ञा, स्त्री. (फा०) सुराखी गनै--रना।
शूरता. वीरता, बहादुरी, पाहम, शोर्य : मरजिया--वि० यौ० दे० (हि० मरना + मरना ...वि. (10) पुरुषों का मा, जीना ) जो मरने से बचा हो, सरकर जीने पुरुष-संबंधी, वीरोचित । मंशा, पु. (दे०) वाला, मरणासन, जो मरने के निकट हो, मर्द। वि० स्त्री०---रदानी मरने पर तैय्यार, अधमरा ! संसा, पु० (दे०)। भरती---वि० (अ.) गर्द सम्बन्धी, मर्दानगी समुद्र में पैठकर मोती निकालने वाला (चौ. में. जैसे-जवांमी )। गोताखोर, डुबकिहा, पनडुब्बा, जिवकिया। मरद - वि० अ०) नीच. तिरष्कृत । (प्रान्तो०)। संज्ञा, स्त्री० (दे०) मरजी। गरला-.क्रि.० दे. ( सं० मागा) जीवों मरजी--- संज्ञा, स्त्री० (१०) गरजी (दे०) के देहों से जीवात्मा का निकल जाना, प्रसन्नता. इदा. चाह. स्वीकृति. आज्ञा । मृत्यु त प्राप्त होगा. भोवन शाक का नष्ट "जाट जुलाहे जुरे दरजी सरजी में मिले होला । “ऐसा हो ना मुबा, कि फेरि न चिक और चमारो'' ----शिवल ल। गरना होय'-- कबी० । यो० मरना-पत्रपना, मरजीवा--- संज्ञा, पु. द. ( हि० भरना भटरना-मिटना । मुहा०- यो सरता. जीना ) मरजिया।
जीना ----शुभाशुभ अवसर, शादी-ग़मी, मरण--संज्ञा, पु. (सं०) मरन (दे०) मृत्यु, । मुख-दुग्य, अत्यधिक कष्ट उठाना । मुहा०. मौत । "मरणशय्याया प्रतिपेदिरे"..--: किमी पर परमा... शासक्त या लुब्ध माघ०।
होना । बात पर मरना---जीवन देकर भी मरणासन्न-~-वि० यौ० (२०) मरने के निकट ! बात रखना । बात को मरना-व्यर्थ या मरत* ---संज्ञा, पु० दे० (सं० मृत्यु ) मृत्यु । निस्सार बातों से शान दिखाने की इच्छा "जियत, मरत, झुकि कि परत' वि० करना । 'मरत कह दात को"मरता । लो०--"मरता क्या न करता।" नंद० । मर मिटना-परिश्रम करते करते मरतबा-संज्ञा, पु० (अ.) पदवी, पद, दर्जा, नष्ट हो जाना ! " इसी तमना में मर मिटे कता, बार, दफा । " वह मरतबा है और हम ।' मारा जाना-व्याकुल होना, ही फहमीद के परे" ---मीर।
प्रत्याकुल होना, शातुर और कातर होना। मरद*-- संज्ञा, पु० दे० ( फ़ाः मर्द ) मर्द, कुम्हलाना, मुरझाना, सूग्वना, लजित पुरुष, बहादुर, साहसी।
होना, संकोच करना, किनी काम का न मरदई:--संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० मरद । रह जाना, नष्ट होना । मुहा०--पानी ई--प्रत्य० ) साहस, वीरता, बहादुरी, भारता-कलंक लाना, बे शरम या निर्लज मनुष्यत्व।
हो जाना, दीवाल की नींव में पानी धंसना,
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