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मघवाप्रस्थ
मच्छी देवराज । " इन्द्रो महत्वान्मघवा बिड़ौजा श्राना, जी का मिचलाना, के या वमन पाकशासनः "---इति अमर।।
मालूम होना । स.. क्रि० (दे०) मचलना, मघवाप्रस्थ--संज्ञा, पु. (सं०) इन्द्रप्रस्थ, मचलने में लगाना । अ० कि० मचलना। दिल्ली, देहली।
मचली. किचलो संज्ञा, श्री० दे० ( हि. मघा--रंज्ञा, स्त्रो० (सं० ) १७ नक्षत्रों में मचलना ) के, वमन, प्रोकाई, भितली. से ५ तारों वाला दवाँ नत्र (ज्यो०)। (प्रान्ती० )। " तोपें छूटे पस सेना में जैसे मवानखत मचान--संज्ञा, पु. १० ( सं० मंच ) शिकार घहराय"-पाल्हा०
___ खेलने या खेत की रखवाली के लिये बैठने मघोनी-संज्ञा, श्री. (सं० मघान् ) को बाँस श्रादि से बना ऊँचा स्थान, माचा,
इन्द्राणी, शची. पुलोमजा। पु०-मबोना। मैंरा, मंच, उच्चापन ।। मघोना--संज्ञा, पु० दे० ( सं० मेघवर्ण) मच्चामच--अव्य० (दे०) लदालद। नीले रंग का वस्त्र।
मचिया--संज्ञा, स्त्री० (हि. मंच+इया मचक-संज्ञा, स्त्री० (हि० मचकना) दबाव । । ---प्रत्य० ) पलँगड़ी, छोटो चारपाई. छोटी मचकना-स० कि० दे० ( अनु० मच मच ) कुरसी । " न्हाय धोय मचिया चदि बैठी किसी वस्तु को दवा कर मच मच शब्द ल दिहिन फटकार "-- स्फु०। निकालना । अ० क्रि० ऐसा दबाना जिपमें मच मचिदाई-मचिलाई.'---संज्ञा, स्त्री० दे० मच शब्द हो, झटका दे कर हिलाना। (हि. मचलना ) मचलाहट, मचलापन, स० रूप-मचकाना।
श्रोकाई, मचलने का भाव। " कह करें मचना-० क्रि० ( अनु शोर-गुल मचलाई लेत नहि देति जो माता"-- स्फु० । चाले कार्य का प्रारंभ काना, फैल या मवैया--वि० दे० (हि. मचाना - ऐसाछा जाना। अ० क्रि० दे० (हि. मचकना) प्रत्य० ) मचाने वाला। मचकना । स० मचाना प्रे० मन्त्रवाना। मोना-स० कि० दे० ( हि० निचोड़ना ) मचमवाना---ग्र० कि० ( अनु० ) मच मच निचोदना, ऐंठना, गारना । शब्द करना. हिलना-डोलना, काँपना । मच्छ----संज्ञा, पु. दे. (सं० मत्प. प्रा० मच्छ ) संज्ञा, स्रो०-मचमचाहट ।
बड़ी मदली, दोहे का ५६ वाँ भेद (पि०) । मचलना-अ० क्रि० (अनु० श्राग्रह या हठ यो० कच्छ-मच्छ।।
करना, ज़िद बाँधना, अड़ जाना । स० । मच्छगंधा-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (सं० मचलाना प्रे० मचलवाना। (संज्ञा, स्त्री० ! मत्स्य ग्धा ) सत्यवती। मचली)।
माड़ मच्छर-संज्ञा, पु० दे० (सं० मरक) मचला-मचली-वि० (हि० मचलना मि० एक छोटा बरसाती पतिंगा, जिपकी मादा पं० मचला ) मचलने वाला, ज़िदी, हठी काट कर डंक से खून चूसती है। बोलने के समय में जो जान कर चुप रहे। मच्छरता*----संज्ञा, खो० दे० (सं० मत्सरता) "हरि मचले लोटत हैं शाँगना ''---सूर० । द्वेप, ईर्पा, डाह मत्सर । " पंडित मच्छरता मचलाहा-वि० दे० (हि० मचला) हठीला, भरे, भूप भरे अभिमान "-दीन । घमडी, ढीठ।
मच्छी---संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० मत्स्य) मछली। मचवा-संज्ञा, पु० (दे०) खाट का पाया। संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० मक्षिका ) मक्षिका, मचलाना---अ० क्रि० (अनु. ) श्रोकाई मक्खी, मादी।
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