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भावनि
विचार, इच्छा, चाह । "यादृशी भावना यस्यसिद्धिर्भवति तादृशी " - वाल्मी० । पुट देना, किसी चूर्णादि को किसी द्रव रस में तर कर घोटना, जिससे द्रव रस का गुण उसमें या जावे ( वैद्य ० ) । &० क्रि० (दे० ) - अच्छा लगना, पसंद आना । वि० दे० (हि० भावना) प्यारा, प्रिय ।
भावनिक - संज्ञा, स्त्री० ( हि० भाना ) जो मन में श्रावे, इच्छानुकूल बात । भावनी - वि० (सं०) भवितव्यता, होनहारी । " नहि चलति नराणाम् भावनी कर्म रेखा "
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- स्फुट० ।
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भावनीय - वि० (सं०) भावना करने योग्य | भावभक्ति - संज्ञा, खो० यौ० (सं०) श्रद्धा, प्रेम और भक्ति-भाव, सम्मान, सत्कार, आदर। भावली - संज्ञा, त्रो० (दे० ) किसान और ज़मीदार के बीच पैदावार की बँटाई । भाववाचक संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वह संज्ञा जिससे किसी पदार्थ का गुण, दशा, स्वभावादि जाना जावे या किसी व्यापार का बोध हो ( व्या० ), जैसे-नीचता । भाववाच्य संज्ञा, पु० सं०) वह वाक्य जिसमें भाव प्रधान हो और कर्त्ता तृतीयांत हो, अथवा क्रिया का वह रूप जो सूचित करे कि वाक्य का उद्देश्य कोई भाव मात्र है ( व्या० ), जैसे--- मुझ पे पहा नहीं जाता । भावसंधि-संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) एक अलंकार जहाँ दो विरुद्ध भावों का मेल प्रगट हो ( काव्य० ) । भावशबलता - संज्ञा,
स्रो० (सं०) एक अलंकार जिसमें कई एक भाव एक साथ प्रगट किये जाते हैं ( काव्य ० ) । भाषा - स० क्रि० दे० ( हि० भाना ) अच्छा लगे, मन माने । " करहु जाय जा कहँ जोइ भावा " - रामा० । भावाभास - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) भाव का आभास मात्र प्रगट करने वाला एक अलंकार ( काव्य ० ) |
भाषा
भावार्थ - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) तात्पर्य, अभिप्राय, मतलब, किसी पद्य या वाक्य का मूल भाव सूचक अर्थ । भावालंकार -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक
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लंकार ( काव्य ) |
भाविक - वि० (सं०) मर्मज्ञ, भेद जानने वाला | संज्ञा, पु० (सं०) भूत और भविष्य को भी वर्तमान सा सूचित करने वाला एक लंकार ( काव्य ० ) |
भावित - वि० (सं०) चिन्तित विचारित, सोचा- विचारा हुआ।
भावी - संज्ञा, स्त्री० (सं० भाविन् ) आगे आने वाला समय, भविष्यत् काल, भवितव्यता, होनहार, भाग्य, श्रवश्यंभावी बात । " भावी भूत वर्त्तमान जगत बखानत राम० । " भावी बस प्रतोति जिय
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भावुक - वि० (सं०) सोचने या भावना करने वाला, जिस पर भावों का प्रभाव शीघ्र पड़े, अच्छी अच्छी बातें सोचने वाला । 'मुहर हो रसिकाभवि भावुकाः संज्ञा, स्त्री० - भावुकता ।
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भावी - अव्य० (हि० भाना) चाहे । सा० भू० स० क्रि० (दे०) अच्छा लगे । भावै तुम्हे करौ तुम सोई ?..... रामा० । भाषण - संज्ञा, पु० (सं०) कथन, व्याख्यान, वक्तृता । वि०- भाषणीय | भाषना* +- - अ० क्रि० दे० (सं० भाषण ) कहना, बोलना । अ० क्रि० दे० (सं० भक्षण) भखना, खाना भोजन करना । भाषांतर - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) उत्था, अनुवाद, एक भाषा से दूसरी में करना । भाषा - संज्ञा, स्त्री० (सं०) कहीं किसी समाज में प्रचलित बातचीत का ढंग, वाणी, बोली, वाक्य, जवान ( फा० ) आजकल की हिंदी, मन के भावों को प्रगट करने वाला शब्दों और वाक्यों का समूह ।
- रामा० ।
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- श्रा० ।