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प्रबेपथु
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अभंजन वि० प्रबेधित, अबेधक।
अबोला-संज्ञा, पु० (सं० अ-+बोलनाअबेपथु -वि० (सं० ) अकंपित । हि० ) रंज से न बोलना, रूठने के कारण अबेर -संज्ञा, स्त्री० (सं० अबेला ) विलंब, | मौन या चुप रहना। देर, अबार, बेर।
अब्ज-संज्ञा, पु. (सं० ) जल से उत्पन्न संज्ञा, स्त्री० दे० (अ+बेर) देर नहीं,
वस्तु, कमल, शंख, हिज्जल, ईजड़, चन्द्रमा, अविलम्ब ।
धन्वतरि, कपूर, सौ करोड़, अरब । अबेला-संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) असमय,
अब्जा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) लक्ष्मी, कमला ।
| अब्जेश-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) रमेश, विलम्ब, देर, अबेरा (दे० )
विष्णु, हरि, कमलेश । अा --वि० ( फा० वेश ) अधिक, बहुत, अब्द-संज्ञा, पु० (सं० ) वर्ष, साल, मेघ, अत्यन्त।
बादल, आकाश, संवत्सर। संज्ञा, पु० (सं० आवेश) जोश ।
अब्धि -संज्ञा, पु० (सं०) समुद्र, सागर, अबैन-वि० दे० (हि. (सं० अवचन ) | सरोवर, ताल, सिंधु, सात की संख्या। मौन, मूक, बचन-रहित, अबयन (दे०)। जि -संज्ञा, पु. (सं०) सागरोत्पन्न " लिये सुचाल बिसालवर, समद सुरंग वस्तु, शंख, चंद्रमा, चौदह रन, अश्विनीअबैन " पदाभ।
कुमार, मोती आदि। अव्य, यौ० ( अबै+न) अभी नहीं। अब्बास-संज्ञा, पु. (अ.) एक निगंध अबैर-संज्ञा, पु० ( दे० ) वैर-भाव-रहित, फूल वाला पौधा, गुलाबास, गुले अब्बास । शत्रुता-हीन ।
अब्बासी-संज्ञा, स्त्री० (अ.) मिस्र देश वि० प्रबैरी ... जो बैरी,या शत्रु न हो। की एक प्रकार की कपास, एक प्रकार का शत्रु-हीन ।
लाल रंग। प्रबोध-संज्ञा, पु० ( सं० ) अज्ञान, मूर्ख,
| अब-संज्ञा, पु० (फा० सं० अभ्र ) बादल अज्ञानता।
मेघ, जलन, अम्बुद। वि० अबोधनीय-जो समझाने के योग्य
अब्रह्मण्य--संज्ञा, पु० (सं० ) वह कर्म जो न हो, जो न समझा जा सके।
ब्राह्मणोचित न हो, हिंसादि कर्म, जिसकी वि० श्रबोधित-बोध-रहित, न समझाया
श्रद्धा ब्राह्मण में न हो। हुश्रा, न समझा हुआ।
अभंग-वि० (सं० ) अखंड, अटूट, पूर्ण, वि० (सं० ) अनजान, नादान, मूर्ख । - अनाशवान, न मिटने वाला, लगातार, संज्ञा, भा० स्त्री० अबोधता-मूर्खता। समूचा। अबोल ---वि० दे० ( हि० अ+बोल ) | अभंगपद-संज्ञा, यौ० पु. ( सं० ) मौन, मूक, अवाक्, जिसके विषय में बोल श्लेषालंकार का एक भेद जिसमें शब्द के या कह न सके, अनिर्वचनीय, चुपचाप ।
वर्णों को इधर-उधर न करना पड़े, बिना संज्ञा, पु० कटु वाणी, कुबोल, बुरा बोल । तोड़े ही शब्द दूसरा अर्थ दे। क्रि० वि० बिना बोले हुए, चुपचाप । अभंगी --- वि० दे० (सं० अभंगिन्) अभंग, "बोलत बोल अबोल"।
पूर्ण, अखंड, जिसका कोई कुछ ले न सके। " कत अबोल तुम अोटन जात "—ल० | अभंजन-वि० ( सं० ) अटूट, अखंड, माधुरी।
| जिसका भंजन न किया जा सके।
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