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१३०५
ब्योंत
ब्रह्मचारी ब्योंत-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० व्यवस्था) ब्रज-संज्ञा, पु० दे० (सं० व्रज) गोकुल मामला, माजरा, व्यवस्था, ढंग, युक्ति, गाँव, मथुरा और वृंदावन के चारों ओर का तदबीर, साधन-रीति, उपाय, कार्य पूरा देश, चलना, जाना, गमन । " सूरदास या उतारने का हिसाब किताब, तैयारी, बायो- ब्रज यों बसि कै"- सूर० ।। जन, संयोग, साधन या सामान की सीमा, | ब्रजना*--अ० क्रि० दे० (सं० वजन) चलना। नौबत, प्रबंध, उपक्रम, समाई, अवसर, ब्रजेश- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रीकृष्ण । तराश, पोशाक के लिये कपड़े की नाप- ब्रह्मड--सज्ञा, पु० दे० (सं० ब्रह्मांड) संसार । जोख से काट-छाँट, ब्यउँत (ग्रा०)। मुहा० ब्रह्म-संज्ञा, पु० दे० ( सं० ब्रह्मन् ) सत्, -ज्यौंत बाँधना-तैयारी करना। लो०- चित् और श्रानन्द-स्वरूप एक मात्र अखिल घूरन के लत्ता बिनै कन्या तन का ब्यौंत बाँधै।" कारण रूप, नित्य सत्ता, परमेश्वर, चैतन्य, ब्योंतना, ब्यौंतना-- क्रि० दे० (हि. भगवान, ज्ञान की परमावधि-रूप, नारायण, ब्योंत ) पोशाक के लिये कपड़े की काट-छाँट परमात्मा, आत्मा, ब्राह्मण । “सत्यं ज्ञानया नाप-जोख करना, ब्यउँतना । द्वि. रूप मनन्तं ब्रह्म', यः ज्ञानस्य परमावधिः "। ब्योंताना, प्रे० रूप-ब्योंतवाना । “दरजी | __ "ब्रह्मज्ञान बिनु नारि नर, कहैं न दूजी
अरजी सुनै न, कुरता मेरो ब्यौते।" बात'-रामा० । ब्राह्मण (सामासिक पदों ब्योपार, ब्यौपार--संज्ञा, पु० दे० ( सं० में) ब्रह्मा, (समास में), ब्रह्मराक्षस, वेद, एक
व्यापार ) व्यापार, रोजगार, उद्यम । और चार की संख्या। ब्योमासुर-संज्ञा, पु० (सं०) एक दैत्य ।।
ब्रह्मकंड-संज्ञा, पु. यो० (सं०) ब्रह्मसर ब्योरन-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. व्योरना)
नामी तीर्थ । बाल संवारने का ढंग। ब्योरना, ब्यौरना--स० कि० दे० (सं०
ब्रह्मगाँठ-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (सं० ब्रह्मग्रंथि) विवरण ) गुथे वालों को सुलझाना ।
जनेऊ या यज्ञोपवीत की गांठ विशेष ।
ब्रह्मग्रंथि- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) जनेऊ या ब्योरा, ब्यौरा-संज्ञा, पु. ( हि० व्योरना) वफसील, विवरण, किसी बात या घटना
उपवीत की गाँठ विशेष । की एक एक बात का कथन । यो०
ब्रह्मघाती-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ब्रह्म+घात ब्योरेवार-विस्तार के साथ।
+क्तिन्) ब्राह्मण का मारनेवाला, ब्रह्महत्याब्योहर, ब्यौहर-संज्ञा, पु० दे० (सं०
कारी। व्यवहार ) धनी, महाजन, ऋणदाता, ऋण ब्रह्मघोष-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वेदध्वनि । देना-लेना।
ब्रह्मचर्य- संज्ञा, पु. (सं०) चार पाश्रमों व्योहरिया, ब्यौहरिया-संज्ञा, पु० दे० में से पहला आश्रम जिसमें मनुष्य का (सं० व्यवहार । धनी, महाजन, ऋणदाता, सदाचारमय माधारण जीवन रख कर मुख्य ब्यौहार । “अब श्रानिय ब्योहरिया | कार्य वेद पढ़ना है, एक प्रकार का यम बोली'-रामा ।
(योग०) । यौ०-ब्रह्मचर्याश्रम । ब्योहार, च्यौहार-संज्ञा, पु. दे. (सं०
ब्रह्मचारिणी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) सरस्वती, व्यवहार ) लेन-देन, व्यापार, बर्ताव, कारय, ध्याय।
दुर्गा, पार्वती ब्रह्मचर्य व्रत रखनेवाली स्त्री। बंद-संज्ञा, पु० दे० (सं० बंद ) समूह, ब्रह्मचारी-संज्ञा, पु. ( सं० ब्रह्मचारिन् ) मँड । " मनु अडोल वारिधिमें बिंबित राका |
प्रथमाश्रमी, ब्रह्मचर्य व्रत रखनेवाला। स्त्री०उड़गण बंद"।
ब्रह्मचारिणी। भा० श. को०-१६५
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