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बाज
वाज़ ) बिना मिवा, अतिरिक्त, वग़ैर | संज्ञा, पु० (दे०) बाजू. बाँह ।
बाज़ -संज्ञा, पु० दे० ( फा० बाज़ ) बाहु, भुजा, बाँह, एक गहना बाजूबंद सेना का एक पक्ष, सदा सहायक चिड़िये के पंख । बाजूबंद - संज्ञा, पु० यौ० ( फ़ा० ) बाँह पर बाँधने का (भुजबंद), गहना, विजायठ. बाजू बाजूवरी! संज्ञा, पु० (३०) बाजूबंद । बाझ - वि० दे० ' हि० बाफना रहित, पेंच | भिस्त न मेरे चाहिये. बाझ पियारे तुझ कबी० ! बानी -- संज्ञा, स्त्री० दे० हि० बझना ) फँसने का भाव, फँसावट, उलझन, बखेड़ा, पेंच ।
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बाफना - अ० कि० दे० (हि० बझना) फँसना
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उलझना, झगड़ना ।
बाट- संज्ञा, पु० दे० (सं० वाट) राह, रास्ता, मार्ग । 6 श्रवन, नामिक, मुख की बाटा - रामा० । मुहा० बाद करना मार्ग बनाना | बाट मोहना या रखना -- इन्तजारी करना, प्रतीक्षा करना । बाट काटन
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बाट
- राह तै करना । वाट पड़ना-पीछे पड़ना, तंग करना, डाका पड़ना, घाटा बट्टा ) होना । परै मोरी नाव उड़ाई बाट पारना डाका मारना | संज्ञा, पु० दे० ( सं० वटक ) तौलने का भार बटखरा माप बहा, घाटा, कमी, सिल पर पीसने का पत्थर ।
चाटना - स० क्रि० दे० ( हि० बाट ) शिल पर लोढ़े से पीसना, पिसान करना । स० क्रि० (दे०) बटना. उबटना -बाँटना । वाटिका -- संज्ञा, खो० (सं०) फुलवारी, वह गद्य जिसमें गुच्छ और कुसुम गद्य सम्मिलित हों । सुमन वाटिका वागवन, विपुल विहंग, निवास " रामा० । वाटी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० वटी ) पिंड, गोली, वाटिका, उपल्लों या अंगारों पर
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बाणासुर
की एक प्रकार की रोटी, अँगाकड़ी, अंकुरी (दे०) लिट्टी प्रान्ती ० ) । सज्ञा, स्त्री० दे० (सं० बल मि० हि० बटुआ ) कम गहरा और चौड़ा कटोरा, बंटी ।
वाडव - संज्ञा, पु० (सं०) बड़वानल, बड़वाग्नि वि० बड़वा सम्बन्धी | बाडवानल --- अंज्ञा, पु० यौ० (दे०) बड़वानल (सं०) बड़वाग्नि, बड़बागी ।
बाड़ा - संज्ञा, पु० दे० ( सं० बाट ) अहाता, पशुशाला मन चोर से घिरा बड़ा मैदान, तोता प्रान्ती") |
बाड़ी -संज्ञा, सो० दे० (सं० बारी ) वाटिका मुहा
बाढ़, बादि संज्ञा, स्रो० (हि० बढ़ना) वृद्धि, बढ़ाव बढ़ती, ज्यादती, अधिकता, अति वर्षादि से नदी में पानी की अधिकता, सैलाब, जलप्लावन, व्यापार का लाभ, तोपों, बंदूकों का लगातार छूटना। मुहा० - बाढ़ दुगना -तोपादि का लगातार छूटना । संज्ञा, स्त्री० ० (सं० वाट ) ( हि० वारी ) तलवार आदि हथियारों की धार, सान, उत्साह, उत्तेजना। मुहा० - बाढ़ (पर) रखना- उत्तेजित या उत्साहित करना, धार तेज़ करना ।
बाढ़ना
० क्रि० दे० ( हि० बढ़ना )
बढ़ना
बागा - संज्ञा, पु० (सं०) सायक, शर, तीर, शर का अग्र भाग गाय का थन, निशाना, लक्ष्य, अग्नि, पाँच की संख्या. एक बाणासुर दैत्य कादंबरीकार एक कवि, संस्कृत सा० ) " ब्राण न बात तुम्हें कहि श्रावति " - राम० ।
बाणगंगा - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) एक नदी । बाणभट्ट संज्ञा, पु० यौ० (सं०) संस्कृत के गद्य काव्य कादम्बरी के निर्माण कर्ता । बाणलिंग संज्ञा, पु० (सं०) नर्मदा नदी से प्राप्त शिव-लिंग ! बाणासुर - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) राजा बलि के सौ पुत्रों में से सर्व ज्येष्ठ, जिसके हज़ार
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