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वाचाबंध १२५२
बाजु बाचाबंध-वि० दे० यौ० (सं० वाचावद्ध ) । जाब्ते के साथ, नियमानुसार । वि०-जो
प्रणवद्ध, प्रतिज्ञावद्ध, प्रण करने वाला। । नियमानुकूल हो। बाछ, बाँछ-संज्ञा, स्त्री० (दे०) चुनाव, निर्वा-बाजार-संज्ञा, पु० (फा०) जहाँ अनेक प्रकार घन, छाँट । स० कि० (दे०) बाँना- के पदार्थ बिकते हों, बजार-बाजार (दे०), चुनना।
हाट पैठ । “बाजार रुचिर न बनै बरनत वस्तु बाछा-संज्ञा, पु० दे० (सं० वत्स, प्रा० वच्छ) बिन गथ पाइये"---रामा० । मुहा०---- गायका बछड़ा, लड़का, बच्छा। (स्त्री० बाजार करना बाजार में चीजें लेना। बाछी)।
बाजार गर्म होना-रौनक अधिक होना, बाज-संज्ञा, पु० दे० (अ. बाज़ ) एक गाहकों और माल का अधिक होना, खूब शिकरी पक्षी । " बाज झपट जिमि कार्य चलना । बाजार तेज (मंदा) लवा लुकाने "---रामा० । प्रत्य० (फा०) | हानावस्तुओं का मूल्य बढ़ (घट जाना। जो शब्दों में लग कर रखने, करने, खेलने के । काम जोरों पर होना। बाजार उतरना, शौकीन का अर्थ देती है। जैसे नशेबाज़, गिरना या मंदा हाना--दाम घटना, दगाबाज । वि० (फा० ) रहित, वंचित । वस्तुओं की माँग कम होना, कम काम मुहा०--बाज़ पाना-पास न जाना, त्या- चलना, किसी नियत समय पर दूकाने लगने गना, छोड़ना, दूर होना । बाज़ करना- का स्थान । रोकना । बाज़ रखना-मना करना । वि. बाजारी-वि० ( फ़ा० ) बाजार का, बाजार(अ० बअज विशिष्ठ, कोई कोई, कुछ थोड़े संबंधी, साधारण, अशिष्ट । से। क्रि० वि०-वगैरह, बिना । संज्ञा, पु.
बाजारू. बजारू --- वि० दे० ( फ़ा० बाज़ारी ) (सं० बाजिन् ) घोड़ा, बाजी। संज्ञा, पु.
बाजारी. मामूली, अशिष्ट । संज्ञा, पु० (दे०) दे० (सं० वाद्य ) बाजा, बाजे का शब्द।।
बाजार। बाज़दावा--संज्ञा, पु० यौ० ( फा० ) अपने दावे, अधिकार या स्वत्व का त्याग देना।
वाजि-बाजी*-संज्ञा, पु० दे० (सं० वाजिन्) बाजन*-संज्ञा, पु० दे० (हि. बाजा)
घोड़ा, पक्षी, बाण, असा या रूसा। वि०-- बाजा । “पुर गहगहे बाजने बाजे"-रामा० ।
चलने वाला । " बाजि भेष जनु काम बाजना- क्रि० दे० ( हि० वजना ) बाजे
बनावा ''-रामा० । “बाज़ीवार बाजी का शब्द करना, बजना (दे०), झगड़ना,
पर बाज़ी लग जाति हौ"-मन्ना० । लड़ना, पुकारा जाना, प्रसिद्ध होना, लगना,
बाजी-संज्ञा, स्त्री० (फा०) हार-जीत पर कुछ चोट पहुँचना।
लेन-देन की शर्त या, दान, दाँच या शर्त के बाजरा, बजरा-संज्ञा, पु० दे० (सं० बर्जरी) साथ आदि से अंत तक पूरा खेल । संज्ञा, पु. एक प्रकार का अन्न । लो० --"बन तपै तो
दे० (सं० वाजिन् ) घोड़ा । मुहा०~ बाजी बजरा होय"।
मारना (ले लेनः )--दाँव या बाज़ी बाजा-संज्ञा, पु० दे० (सं० वाद्य ) बाद्य, जीतना। बाजी ले जाना-जीत जाना, राग-रागिनी, स्वर-ताल के लिये बजाने की
बढ़ जाना, बाज़ी लगाना। संज्ञा, पु० दे० मशीन या यंत्र । यौ०-वाजा-गाजा, (सं० वाजिन् ) घोड़ा। (बाजे गाजे)-बजते हुए बाजों का बाजीगर-संज्ञा, पु. (फा०) जादुगर । संज्ञा,
समूह । बाजे गाजे से-धूम-धाम से। स्त्री० बाजीगरी । ( स्त्री० बाजीगरनी। बाज़ाब्ता-क्रि० वि० (फा० ) कानून या बाजु-अव्य० दे० (सं० वर्जन, मि० फा०
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