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बहल, बहली
बहन, बहली - संज्ञा, स्रो० दे० (सं० वहन) रथ जैसी छोटी हलकी बैलगाड़ी । खड़खड़िया ( प्रान्ती० ) ।
बहलना- क्रि० प्र० दे० ( हि० बहलाना ) मनोरंजन होना, प्रसन्न होना, चिन्ता या दुख दूर हो मन का अन्य ओर लगना । बहनाना - स० क्रि० दे० ( फा० बहाल ) मन प्रसन्न करना, मनोरंजन करना, बद्दकाना, भुलावा देना, फुसलाना, चिंता या दुख भुलवा कर चित्त का अन्य ओर या बातों में लगाना ।
बहलाव - संज्ञा, पु० दे० ( हि० बहलाना ) प्रसन्नता, , मनेारंजन, बहलाने का भाव । बहल्ला - संज्ञा, पु० दे० ( हि० बहलना ) व्यानंद – प्रसन्नता ।
महस - संज्ञा, स्त्री० ( ० ) वाद-विवाद, तर्क, दलील, झगड़ा, बदाबदी, होड़, खंडनमंडन की युक्ति, हुज्जत वि० बसी । बहसना - ० क्रि० (दे०) बहस या विवाद करना, बदाबदी या होड़ लगाना । बहादुर - वि० ( फ़ा० ) पराक्रमी, शूरवीर उत्साही साहसी । वि० पु० बहादुराना, संज्ञा स्त्री० बहादुरी । बहाना - स० क्रि० दे० ( हि० बहाना) प्रवाह ( धार ) में छोड़ना, लुढकाना, ढालना, फेंकना, प्रवाहित करना. हवा चलाना, गँवाना, धन खोना, व्यर्थ व्यय करना, धार या बूंद के रूप में बराबर छोड़ना, सस्ता बेचना, डालना द्रव वस्तु का नीचे की ओर चलाना या छोड़ना | संज्ञा, पु० दे० ( फ़ा० ) मतलब निकालने या किसी बात | से बचने के लिये झूठ बात कहना, मिस व्याज, हीला, कहने या सुनने का एक हेतु या कारण, स्वार्थ सिद्धि के लिये मिथ्या बात । बदार - संज्ञा, स्त्री० ( फ़ा० ) वसंत ऋतु.
यौवन का विकास आनंद प्रफुल्लता मौज, जवानी का रंग, रौनक़ मज़ा, कौतुक, तमाशा ! " बाग़ो बहार प्रतिशे नमरूद
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बहीर
को किया " - जौक । यौ० फ़सले बहार । बहाल - वि० ( फा० ) प्रथम के समान स्थित, जैसे का तैसा, प्रसन्न, स्वस्थ, मुक्त | बहाली - संज्ञा, स्रो० ( फ़ा० ) फिर से नियुक्ति फिर उसी पद पर होना | संज्ञा, स्त्री० (हि० बहलाना) व्याज मिस, बहाना । बहाव - संज्ञा, पु० ( हि० बहना ) बहने का
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भाव, प्रवाह, धारा, बहता पानी । बहि - अव्य० (सं० वहिस् ) बाहर | बहिक्रम* संज्ञा, पु० दे० (सं० वयः क्रम ) उम्र, अवस्था ।
बहित्र - संज्ञा, पु० दे० ( सं० वहित्र ) नाव | बहिन - संज्ञा, स्रो० दे० (सं० भगिनी ) भगिनी, बहिनी |
बहियाँ -संज्ञा, खो० दे० (सं० बाहु ) हाथ, बाहु भुजा, बाँह | "करु बहियाँ बल आपनी छाँड़ि बिरानी घास "... - कबीर । बहिरंग - वि० (सं०) बाहिरी, बाहर वाला । ( विलो० - अंतरंग ) । बहरतं*:- अव्य० दे० (सं० वहिः ) बाहर | बहिर्गत - वि० यौ० (सं०) बाहर छाया या निकला हुआ, बहिरागत । बहिर्भमि --- संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) बस्ती या आवादी से बाहर वाली ज़मीन । बहिर्मुख - वि० यौ० (सं०) विरुद्ध, प्रतिकूल, विमुख | बहिलापिका-संज्ञा, स्रो० (सं०) एक प्रकार की पहेली जिसका उत्तर बाहरी शब्दों से प्राप्त होता है ( काव्य ) | ( विलो० अन्तलपिका ) |
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वहिष्कार - संज्ञा पु० ( सं० ) निकालना, हटाना, बाहर करना । ( वि० बहिष्कृत ) । बही - संज्ञा स्त्री० दे० ( सं० वद्ध हि० बँधी ) हिसाब-किताब लिखने की किताब । बहीर-संज्ञा स्त्री० दे० ( हि० भीड़ ) जनसमूह सेना की सामग्री, तथा उसके साथ के सेवक, सईम, दुकानदार आदि । * * - अव्य० (सं० बहिल ) बाहर |
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