________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बरसाइत १२३८
बराबर मुहा०-बरस पड़ना-प्रति क्रुद्ध होकर बरहीमख*-संज्ञा, पु. दे. यौ० (सं० डाँट-फटकार बताना । भूमा अलग करने को वर्हिमुख ) अग्निमुख, देवता । अन्न को वायु में उड़ाना, ओसाया जाना। बरहौं-संज्ञा, पु० दे० (हि० बारह + औंबरसाइता-संज्ञा, स्री० दे० ( सं० वट+ प्रत्य० ) बारहवें दिन का सूतिका-स्नान, सावित्री) बरगदाही (ग्रा० ) जेठ बदो बरही (दे०)। श्रमावास्या जब वट की पूजा होती है। कैसी बराड, बरह्मांड-संज्ञा, पु० दे० (सं. बरसाइत में भई बर साइतरी-मन्ना। ब्रह्मांड ) ब्रह्मांड, सारा संसार, खोपड़ी। बरसान--- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वर्षा ) वर्षा बरह्मावना-स० क्रि० दे० (सं० ब्रह्म। काल, वर्षा ऋतु । 'बरसात गयी बर साथ न
भाव ना) आशीर्वाद या असीस देना । सोई"-स्फु०।
बरा-संज्ञा, पु. दे० ( सं० वटी ) उड़द की बरसाती-वि० दे० (सं० वर्षा ) बरसात
पिसी दाल से बना एक पक्वान्न, बड़ा। संज्ञा, सम्बन्धी. बरपात का, एक प्रकार का कपड़ा
पु० (दे०) टाड़, बहुँटा, बाँह का एक भूषण, जिससे वर्षा में शरीर नहीं भीगता।।
बरगद, वट वृक्ष ।
बराई-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० बड़ाई ) बड़ाई, बरसाना-स० क्रि० ( हि० बरसना का प्रे०
प्राधिक्य, श्रेष्ठता। रूप०) वृष्टि या वर्षा करना. वृष्टि-जल सा अधिक गिरना, अधिक मात्रा या संख्या में
बराक-संज्ञा, पु. दे० ( सं० वराक ) शिव,
युद्ध । विa-बेचारा, नीच, बापुरा, शोचसब ओर से मिलना, डाली देना पोसाना ।
नीय, अधम । “महावीर बाँकुरे बराकी बरसी-संज्ञा, स्त्री० (हि० परस-+ ई० -- प्रत्य०)
बाहुपीर क्यों न. लंकिनी ज्यों लात-घात मृतक का वार्षिक श्राद्ध।
ही मरोरि मारिये"-कवि० । बरसौड़ी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० बरस+
बराट, बगटक-- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्रौड़ी-प्रत्य०) वार्षिक कर या भाड़ा।
वराटिका ) कौड़ी। बरसौहा-वि० दे० (हि० बरसना +ौहाँ.--
बरात-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वरयात्रा) प्रत्य० ) बरसने वाला । यौ० (वर+ौंह)
जनेत, । प्रान्ती० ) वर के साथ कन्या के प्रिय-संमुख । " जाति बरसौहाँ बरलौहाँ
यहाँ जाने वाले लोगों का समूह । " लागी लखि बारिद मैं"-मन्ना।
जुरन बरात"-रामा०। बरहा-संज्ञा, पु० दे० (हि० बहा ) खेतों में |
बहा ) खती में बराली-संज्ञा, पु० दे० (हि० वरात - ईसिंचाई के लिये छोटी नाली। संज्ञा, पु. प्रत्य० ) वर के साथी । विलो०-घराती। (दे०) मोटा रस्सा । संज्ञा, पु० द० (सं०
" बने बराती बरनि न जाही"... रामा० । वर्हि ) मयूर मोर, मयूर-शिखा । स्त्री० बराना-अ० क्रि० दे० ( सं० वारण) प्रसग अल्पा.--बरही।
पर भी बात न कहना, बचाना, रक्षा करना। बरही-संज्ञा, पु० दे० (सं० वर्हि ) मोर, स० क्रि० दे० ( सं० वरण ) बेराना (ग्रा०)। मयूर, मुर्गा, साही जंतु। संज्ञा, स्त्री० (दे०) छाँटना, चुनना, वाँ फना (दे०)। -स० मोटी रस्सी जलाने की लकड़ियों का बोझ. क्रि० बालना. जलाना जलवाना। बरावना प्रसूता के १२वें दिन का स्नानादि कृत्य, । प्रे० रूप---बरघाना। बरहों (ग्रा०)।
बराबर-वि० (फा० गुण मुल्य, मात्रादि बरहीड----संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० में समान, तुल्य, समान, समतल भूमि । वहिंपीड़) मोरमुकुट ।
मुहा०-बराबर करना--समान या पूरा
For Private and Personal Use Only