SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२०१ फैटना फेरा बाँध कर तैयार होना । संज्ञा, स्त्री० (हि. अंतर, भेद, उलझन । मुहा०-फेर में फंटना ) फेंटना का भाव । पड़ना (आना)-भ्रम, धोखा, संदेह, फेटना-स० कि० दे० (सं० पिट) गाढ़े संशय, असमंजस या झंझट में पड़ना द्रव पदार्थ को अँगुलियों और हथेली से (श्राना ) । षट्चक्र, षड़यंत्र । फेर पड़ना रगड़ना, ताशों को उलट पलट कर मिलाना। (होना) भूल या अंतर पड़ना । मुहा-- फेंटा-संज्ञा, पु० दे० हि० फेंट) फेंट, पटुका, निन्यानबे का फेर-रुपया जोड़ने या कमरबंद, छोटी पगड़ी। बढ़ाने का चसका, ११ से १०० रुपये पूरे फेकरना-कि० अ० (दे०) खुलना, नंगा | करने की चिंता । फेर (लगाना) बाँधना होना। कि० अ.-फेंकरना-स्थार की -- लेन-देन या आदान-प्रदान का क्रम भाँति ज़ोर से चिल्ला चिल्ला कर रोना।। लगाना, युक्ति, ढंग, उपाय, एवज़, बदला । फेण-संज्ञा, पु० दे० (सं०) फेन-नन्हें नन्हें यौ०-उलट-फेर --उलटा-पलटा चालबुलबुलों का गठा समूह, फेना, झाग । फेर आना-जाना, छल, धोखा। जाल (वि०–फेनिल)। फेर- छल-कपट । हेर-फेर-लेन-देन, फेनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० फेनिका ) सूत । व्यवसाय, श्रादान-प्रदान। घाटा, हानि, भूत के लच्छे जैसी एक मिठाई, सूनफेनी। । प्रेत का प्रभाव, दिशा, ओर :- अव्य. फेफड़ा-संज्ञा, पु. दे० (सं० फुप्फुस + | (दे०) फिर, पुनः, दोबारा । " फेर न है डा-प्रत्य० ) फुप्फुस, प्राणियों की छाती है कपट सों, जो कीजै व्यापार "-वृ। के भीतर साँस लेने का अवयव । फेरना-स० कि० दे० (सं० प्रेरणा) मरोड़ना, फेफड़ी, फेफरी--संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. घुमाना, लौटाना, वापिस करना या लेना, पपड़ी ) पपड़ी, होठों के चमड़े की पपड़ी। लौटा लेना देना ), चक्कर देना, ऐंठना, फेर-संज्ञा, पु० दे० ( हि० फेरना ) फिरने मोड़ना, पोतना, पीछे चलाना, इधर-उधर या घूमने की क्रिया, दशा, या भाव, चक्कर, अपर स्पर्श करना, तह चढ़ाना। मुहा०घुमाव, रदबदल, परिवर्तन । “सब सों पानी फेरना--नष्ट-भ्रट करना । घोषित लघु है माँगिबों यामें फेर न सार"-वृ.। या प्रचारित करना, घोड़े आदि पशुओं प्रेत-बाधा, धोखा, जाल, छल, संदेह, । को चलना सिखाना, उलट-पलट या इधर. भ्रम, मोड़, झुकाव, झंझट, चालबाज़ी, ! उधर करना, बदलना, परिवर्तन करना । बखेडा । मुहा०-फेर खाना-सीधी राह मुहा०-आँखे फेरना ( फेर लेना )न जाकर टेदी राह से अधिक चलना, चक्कर मर जाना । मुँह फेरना-विमुख होना खाना, भटकना । फेर देना- लौटा या वापिस कर देना। फेर-फार-पेंच, घुमाव- फेरघट-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० फेरना , फिराव, जटिलता, अदल-बदल, अंतर, घुमाव-फिराव, चक्कर, पेंच, बहाना, फेरबहाना, चक्कर, इधर-उधर, छल-कपट । फार, टाल-मटूल । मुहा०-कों या ( समय ) दिनों का फेरा--संज्ञा, पु. ( हि० फेरना ) परिक्रमण, फेर-- दशान्तर, विपत्ति का समय, अच्छी कील पर चारों ओर घूमना, चक्कर. मोड़ एक से बुरी दशा होना। " रहिमन चुप है बार की लपेट बारम्बार आना-जाना. घूमते बैठिये, देखि दिनन को फेर।" कुफेर फिरते श्रा जाना या पहुँचना, फिर लौट कर श्राना, मंडल, आवर्त, घेरा व्याह में भाँवर । बुरी दशा । सुफेर- अच्छी दशा "बोलब हरि जो गये फिरि कीन्ह न फेरा ।" बचन बिचार जुत, समझि कुफेर-सुफेर ।" -पद्मा० । भा० श० को०-१५२ उपेक्षा For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy