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फुसकार, फूक, मुख से निकली आयु का फालना-प्रसन्न या हर्षित होना, उल्लास शब्द । फुफकार (दे०)।
में रहना । शरीर के किसी अंग का सूजना, फूफा-संज्ञा, पु. ( अनु०) पिता का |
मोटा या स्थूल होना, इतराना, धमंड बहनोई, बुना या फूफी का पति ।
करना, प्रसन्न होना । मुहा० --- फूता फूमी-संज्ञा, स्त्री० ( अनु० ) पिता की फूला फिरना-हर्ष में घूमना। फूले बहिन, भुश्रा, बुश्रा, फूत्रा, फफू ।
(अंग) न समाना--बहुत प्रसन्न होना । फूल-संज्ञा, पु० दे० (सं० पुष्प ) पुष्प, ।
मुँह फुत्नाना-मान करना, रूठना । सुमन, कुसुम, पौधों की फलोत्पादक शक्ति
फूलमती--संज्ञा, स्त्री० (हि० फूल + मती वाली ग्रंथि या गोठ । मुहा०-(मुख प्रत्य० ) एक देवी । से ) फूल मड़ना-मधुर या प्रिय वचन
फूनी--- संज्ञा, स्त्री० (हि० फूल) जाला, सफ़ेद बोलना । फूल सा-अति सुकुमार या |
माँदा, आँख की पुतली पर पड़ा छोटा दाग । कोमल, सुन्दर, हलका। फूल्ल संघ कर फस-संज्ञा, पु० दे० ( सं० तुष ) छप्पर में रहना-बहुत कम खाना, (व्यंग्य) । पान, लगाई जाने वाली लंबी दृढ़ घास, गाडर, फूल सा-बहुत ही सुकुमार. पुष्पाकार
तिन (दे०) सूखा तृण, खर । यौ० घासबेल-बूटे, कसीदे, नक्काशी, पुष्पसाभूषण, जैसे
फूस, फूम-फाम। -शीश-फूल, करण-फूल, हथफूल, हिदू)
फूहड़-फूहर-वि० दे० (सं० पर गोवर+ कुष्ठ-जनित शरीर के सफेद या लाल दाग,
घट- गढ़ना ) निर्वद्धि, बे शऊर, बे ढंगा, स्त्रियों का रज, जलने के पीछे मृतक की
भद्दा । जैस लो.. "पेंडन मैं थूहर, तस बची हड्डी, ताँबा और राँगे से बनी एक
तिरियन में है फूहर"- घाघ । धातु, पोतल श्रादि की गोल फूल सी गाँठ । | फूही-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० फूत्कार) फुहार । संज्ञा, स्त्री० (हि. फूलना ) फूलना का भाव, फंकना-स० कि० दे० (सं० प्रेषण) एक श्रानन्द, प्रसन्नता, हर्ष उत्साह उमंग। स्थान से उठाकर बल-पूर्वक दूसरे स्थान फूलगोभी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (दे०) गोभी में डालना या गिराना, भूल से इधर-उधर ( फूलदार ) गाँठ गोभी, बँधे पत्तों के पिंड- छोड़ना, गिराना, अनादर से छोड़ना, वाली गोभी।
अपव्यय करना। द्वि० रूप-फेंकाना, प्रे० फूलदान-संज्ञा, पु० यौ० (हि० फूल+दान- रूप फेंकवान। फा० ) पीतल या काँच आदि का गिलास-फरना-अ० क्रि० (अनु० फे फें करना) नुमापात्र जिसमें गुलदस्ता रखा जाता है। बड़े ज़ोर से चिल्ला कर रोना । जैसे-स्यार | फूलदार-वि० ( हि० फूल + दार फा०) | फेकारना--स० क्रि० (दे०) बाल खोले नंगे वह पदार्थ जिस पर फूल पत्ते बने हों, . सिर रहना। फूलवाला।
फेंट- संज्ञा, पु० दे० (हि० पेट-पेटी ) फेरा, फूलना-क्रि० अ० ( हि० फूल + ना- घुमाव, कटि-मंडल, कमर का घेरा, कमर (प्रत्य॰ ) पुष्पित या कुसमित होना, में लपेट कर बाँधा गया धोती या वस्त्र का सुमन युक्त होना, खिलना. विकास को छोर। पटुका (७०) लपेट, कमरबंद, प्राप्त होना, कली का संपुट खुलना, कुछ फंटा (दे०), परिकर । मुहा०-ट भर जाने से किसी वस्तु का फैलकर बढ़ना।। धरना या पकड़ना-कमरबंद को मुहा०-फूनना • फलना धनी और ऐसा पकड़ना कि भग न सके । फेंट सुखी होना, उन्नति करना । फूलना। (परिकर ) कसना या बांधना- कमर
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