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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपसगुन १११ अपहारक अपसगुन-पंजा, पु. ( हिं० दे० ) है खो खो० अपस्नाता । अपशकुन । | अपस्मार--संज्ञा, पु० (सं० ) एक प्रकार प्रासना-अपसवना-ग्र. क्रि० ( सं० का रोग, जिसमें रोगी काँप कर पृथ्वी पर अपसरण ) खिसकना. सरकना, भागना, मूर्छित हो कर गिर पड़ता है, मृगी रोग, चल देना। मूर्छा, वायु रोग । "पौन बाँधि अपसवहिं अकासा" प० । | अपस्वार्थी-वि० (हिं. अप+ स्वार्थी अपसर-वि० ( हिं. अप=अपना+सर- सं० ) स्वार्थसाधने वाला, मतलबी. प्रत्य० ) श्राप ही प्राप, मनमाना, अप। | खुदग़र्ज। मन का। अपह-वि० (सं०) नाशकरने वाला, क्रि० प्र० सरकना, खसकना । बिनाशक जैसे क्लेशापह । अपसरण-संज्ञा, पु० (सं० ) प्रस्थान, । अपहत वि० ( सं ) नष्ट किया हुआ मारा चना जाना । अपसरन (दे०)। हुया, दूर किया हुआ। अपसर्जन-संज्ञा, पु. ( सं० ) विसर्जन, अपहनन--संज्ञा, पु. ( सं ) हत्या, वध, स्याग, समाप्ति । घात। वि० अपसजिति–विसर्जिति, समाप्त। अपहरई-स० कि० (सं० अपहरण ) चुराता अपसव्य-वि० (सं० ) सव्य का उलटा, है, नाश करता है, चुराले. विनष्ट करले । दाहिना, दक्षिण, उलटा, विरुद्ध, जनेऊ “सरद-ताप निलि ससि अपहरई '' रामा० । को दाहिने कंधे पर रक्खे हुये, वाम भाग, अपहरण- संज्ञा, पु. ( सं० ) हरलेना, बाँया हाथ । लूटना, चोरी, चौर्य छीनना, लेलेना, अपसर्प-संज्ञा, पु. ( सं ) चर, दूत, हर- ( वलात् ) लूट, छिपाव संगोपन । कारा, प्रतिनिधि, गूढ पुरुष, भेदिया। अपहरना---स० कि० (सं० अपहरण ) अपसोसा- संज्ञा, पु० दे० (फा० अफ़सोस ) छीनना, लूटना चुराना, कम करना, घटाना, दुःख, चिता, खेद, पश्चात्ताप । क्षय करना। "काहे को अपसोस मरति हो नैन तुम्हारे अपहर्ता-संज्ञा, पु. ( सं० अप +है+तृच् ) नाही'—सूर० । छीनने या हरने वाला, चोर, लूटने वाला, अपसोसना --अ० कि० ( हि० अपसोस ) : लुटेरा, छिपाने वाला, तस्कर, अपहारक, सोच करना, अफसोस या पश्चात्ताप करना । _चोट्टा (दे० ), अशहरता (दे०)। प्रपसौन--संज्ञा, पु० दे० ( सं० अपशकुन ) | अपहरित-वि० (सं० ) छीना लिया गया, असगुन, बुरा सगुन. अशकुन । हर लिया गया, अपहृत । अपसौना*-- अ. कि. ( ? ) आना, अपहसित-वि० (सं०) उपहसित, जिसका पहुँचना। मज़ाक़ बनाया गया हो। अपस्नान-संज्ञा, पु. ( सं० ) वह स्नान जो अपहा--वि० (सं० अप् + हन् + श्रा) प्राणी के कुटुम्बी उसके मरने पर करते हैं, हन्ता, हत्यारा, हिंसक, बधिक । मृतकस्नान । अपहार--संज्ञा, पु. (सं० अप्-+ह+घञ्) वि. अपस्नात.। अपचय, हानि, धन का निरर्थक व्यय । अपस्नात-वि० ( सं० ) मृतकस्नान किया अपहारक-वि० (सं० ) अपहरण-कर्ता हुधा। । तस्कर, चोर। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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