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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फगुश्रा, फगुषा . फ-हिंदी-संस्कृत की व माला में पवर्ग | फंसना-स० कि० दे० ( हि० फांस ) का दूसरा वर्ण, २२वाँ अक्षर, इसका उलझना, अटकना, फदे या बंधन में पड़ना, उपचारण-स्थान श्रोष्ठ है 18 धोखे में पड़ना । मुहा०-बुरा फैसनाफ-संज्ञा, पु० (सं०) कटु और रूखा वाक्य, विपत्ति में पड़ना । चंगुल में फँसनाफुफकार, व्यर्थ की बात ।। कब्जे में आना। क-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० फक्किका ) फाँक, फँसाना, सावना (दे०)-स० क्रि० (हि. फाँकी, चीरी हुई वस्तु का एक भाग या टुकड़ा। फँसना ) फंदे में लाना, बझाना, वशीभूत फंका*-- संज्ञा, पु. दे० (हि० फांकना) किसी या बश में करना, अटकाना । प्रे० रूप-सवस्तु का उतना भाग जो एक बार में फाँका वाना । संज्ञा, पु० (दे०) साव । धोखे में जाये, टुकड़ा, भाग, अंश । स्त्री० की।। या उलझन में डालना। फंकाना-स० क्रि० (द० ) किसी को , फसिहारा--वि० हि० फाँस--- हारा - प्रत्य०) फाँकने में लगाना। फंकी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० फंका ) उतनी फँसाने वाला । स्त्री० फँसिहारिन । औषधि जो एक बार में फाँकी जा सके, फक-वि० दे० (सं० स्फटिक) साफ़, सफेद, फॉकने की औषधि । - संज्ञा, स्त्री० दे० स्वच्छ, बदरंग । मुहा०-रंग (चेहरा) फक (हि. फाँक ) छोटी फाँक । हा जाना या पड़ना-घबरा जाना, चेहरे फंग*-संज्ञा, पु. दे० ( सं० वंध ) फंदा । पर उदासी छा जाना, मुख फीका पड़ना। बंधन, राग, प्रेम, अनुराग, स्नेह ।। फकड़ी-संज्ञा, स्त्री. ( हि. फक्कड़+ईफंद-संज्ञा, पु. दे. ( सं० बंध, हि० फंदा) प्रत्य० ) दुर्गति, दुर्दशा, खराबी। बंधन, फंदा, फाँस, जाल, कपट, धोखा, फकत -- वि० (अ.) पर्याप्त, सिर्फ़, केवल, मर्म, दुःख, नथ की गूंज, रहस्य, कष्ट । बस, अलम्, इति । फँदना*-अ० कि० दे० (सं० बंधन, हि० फकीर-संज्ञा, पु० ( अ०) निधन, भिक्षुक, फंदा ) फँसना, फंदे में पड़ना। स० क्रि० साधु, भिखारी त्यागी, योगी । संज्ञा, स्त्री. (हि. फाँदना) फाँदना, उलाँधना। फकीरी, वि० स्त्री० फकोरिन फकीरनी। फंदचार-वि० दे० ( हि० फंदा ) जाल या फ़कीरी-संज्ञा, स्त्री. ( हि० फ़कीर+ईफंदा लगाने वाला। प्रत्य०) साधुता, निर्धनता, कंगाली, भित्तुफंदा-संज्ञा, पु० (सं० पाश, अंध) फँसाने कता । वि० फ़कीर की। "झूठी झार फूकहू को तागे या रस्सी का पाश, फाँस, जाल, फकीरी परीजाति है"- रत्ना। फाँद, बंधन, दुख । मुहा०-फंदा- फक्कड़- वि० (दे०) निर्धन और मस्त, लगाना-फंसाने को जाल लगाना. धोखा, लापरवाह । संज्ञा, स्त्री० फकड़ी, फक्कड़ता। देना। फंदे में पड़ना (श्राना-धोखे में | फक्किका संज्ञा, स्त्री० (सं०) कूट या गूढ पड़ना, वश में होना। प्रश्न, अयोग्य व्यवहार, छल, धोखेबाजी । फँदाना-स० क्रि० दे० ( हि० फंदना ) | "कठिन दीक्षित-निर्मित फक्किका'- स्फुट । जाल में फँसाना, फंदे में लाना प्रे० रूप फरवर---संज्ञा, पु० दे० (फा० फन ) गवं, फंदावना, फंदवाना । स० क्रि० ( सं० | गौरव। स्पंदन ) कुदाना, लघवाना। फग*--संज्ञा, पु० दे० ( हि० फंग ) फंदा। फँफाना-अ० क्रि० दे० (अनु०) हकलाना, फगुआ, फगुवा-संज्ञा, पु० दे० (हि० फागुन) बोलने में जीभ काँपना। __ होली, होली का उत्सव, फागुन में श्रामोद For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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