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प्राणमय कोष (कोश) १९८७
प्रादुर्भूत प्राणमय कोष ( कोश )-संज्ञा, पु. यौ० । प्रातःकर्म - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्नान (सं०) पाँच कोशों में से दूसरा जो पाँच संध्यादि प्रभात के काम । "प्रात-कर्म प्राणों से बना है और जिसमें पाचों कर्मेन्द्रियाँ | करि रघुकुल-नाथा"-रामा ।
भी सम्मिलित हैं ( वेदांत )। प्रातःकाल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) निशान्त प्राण-घल्लभ---संज्ञा, पु० यौ० (सं०) परम | में सूर्योदय से पूर्व का समय इसके ३भागहैं, प्रिय, पति । स्त्री. प्राण-वल्लभा, प्रिया। सबेरे, तड़के । प्रातकाल (दे०) वि०प्रातः प्राणवायु --संज्ञा, पु० यौ० (सं०) प्राणपधन, कालीन) “प्रात काल उठि के रघुनाथा" प्राण ।
-रामा० प्राण-शरीर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मनोमय प्रातः कृत्य -- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) स्नानसूचम शरीर।
संध्यादि, प्रातः कर्म। प्राणसम-वि• यौ० (सं०) प्राण-तुल्य । प्रातः क्रिया--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) स्नान (स्त्री० प्राणासमा )।
संध्यादि, प्रतिक्रिया (द०)। " प्रातक्रिया प्राणान्त-संज्ञा, पु. यौ० ( सं०) मरण, । करि गुरु पह श्राये"-रामा० । मृत्यु · यौ० प्राणान्त पीड़ा (कट)। प्रातः संध्या --- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) सबेरे प्राणान्तक--- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) जीव या की संध्या, सबेरे के समय, ब्रह्मध्यान ।।
प्राण लेने वाला, घातक, यमदूत । प्रातः स्मरण- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) सवेरे प्राणाधार-प्राणाधिक-वि० यौ० (सं०) भगवान की याद करना। परमप्रिय, प्यारा । संज्ञा, पु. स्वामी, पति । प्रातः स्मरणीय-वि• यौ० (सं०) सबेरे स्त्री० प्राणाधार, प्राणाधिका। याद करने के योग्य, पूज्य, श्रेष्ठ ।(स्रो० प्रातः प्राणायाम-संज्ञा, पु. ( सं० ) प्राणों का स्मरणया)। वश में करना या रोकना, श्वासप्रश्वास की प्रातराश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) प्रातःकालीन गति का क्रमशः दमन, अष्टांग योग का भोजन, जल-पान, कलेवा । " सराघवैः किं चौथा अंग (योग)।
वत बानरैस्तैयैः प्रातराशो, पिप्रन कस्य प्राणि धुत संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) वह चिन्नः "-भट्टी। बाज़ी जो तीतर मेढे श्रादि जीवों की लड़ाई प्रातनाथ- संज्ञा, पु. यौ० (सं० प्रातः+ पर लगाई जावे।
नाथ) सूर्य । प्राणी-वि० (सं० प्राणिन्) नोवधारी । संज्ञा, प्रालिकूल्य--संज्ञा, पु० (सं०) वैपरीत्य, विपपु० जीव, जंतु, मनुष्य । -संज्ञा, स्त्री० क्षता, शत्रुता। पु० पुरुष या स्त्री।
प्रातिपदिक-संज्ञा, पु० (सं०) अग्नि, धातु, प्राणेश, प्राणेश्वर-संज्ञा, पु० यौ० ( सं०) । प्रत्यय, और प्रत्यप्रान्त को छोड़ कर अर्थपति, जीवनेश, परमप्रिय, प्रणाधीश। वान शब्द, जैसे--राम । " अर्थवद् धातुर (स्त्री० प्राणेश्वरी)।
प्रत्ययः प्रातिपदिकम् "--अष्टा० । प्रात-अव्य० दे० (सं० प्रातः) तड़के, सवेरे. भोर प्राथमिक-वि० (सं०) प्रारंभिक, आदि या (ग्रा०)। लज्ञा. पु० प्रभात, प्रात काल, सबेरे। पहले या पूर्व का।
"प्रात काल चलिहौं प्रभुपाही"---रामा । प्रादुर्भाव --- संज्ञा, पु० (सं०) प्रकट होना, प्रातः-संज्ञा, पु. (सं० प्रातर् ) प्रभात, उत्पत्ति, आविर्भाव। सबेरे । यौ० प्रात:काल । " प्रातः काले प्रादुर्भत - वि० (सं०) उत्पन्न, प्रकटित, पठेन्नित्यम् "- स्फु०।
। थाविर्भूत, जिसका प्रादुर्भाव हुथा हो ।
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