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प्रस्फुटित
प्राकार प्रस्फुटित--वि० (सं०) विकसित, प्रफुल्लित, प्रहारना* --- स० क्रि० दे० (सं० प्रहार ) प्रकाशित, प्रस्फुरित । संज्ञा, मु. प्रस्टन- मारना, प्राघात करना, मारने को फेंकना । विकास । वि० प्रस्फुटनी। ।प्रहारित* -- वि० ( सं० प्रहार ) प्रताड़ित, प्रस्फुरमा -संज्ञा, पु. ( स०) विकसना, जिसपर श्राघात या 'चोट की जाय। निकलना, प्रकाशित होना, पृ.लना । वि०-प्रारो- वि० (सं० प्रहारिन्) मारने, आघात प्रस्कुरणीय, प्ररित।
या प्रहार करने वाला, छोड़ने या चलाने प्रमोट मोहन-संज्ञा, पु० सं०) स्फोट, वाला. बिनाशक खी. हामि ।
एक वारसी बड़े जोर से "टना, या खुलना। प्रहित--वि० (स०) क्षिप्त, प्रोषित, प्रेरित । प्रत्रवाः संज्ञा, पु० (सं०) निर, सोता, ! " रणेषु तस्य प्रहिता प्रवेतमा ---माघ०। झरना. प्रपात, जल का गिरना या टपक कर प्रहमा -- वि० (सं०) परित्यक्त, छोड़ा हुआ । बहना वि०-प्रस्त्रवणाय, पवित। प्रहुत-संज्ञा, पु. (सं०) पलिवैश्वदेव, भूतप्रसव - संज्ञा, पु० (सं०) मूत्र, भूत, पेशाब ।। प्रस्ताव- संज्ञा, पु० (सं०) झरना, पेशाव प्रहर --- वि० (सं० ) संतुष्ट, प्रसन्न, हर्षित, प्रस्वेद--- संज्ञा, पु० (सं०) पलीना पसव (दे०)।
यौ० प्रहृष्टमना--- संतुष्ट चित्त । प्रहर-संज्ञा, पु० : सं०) दर (दे०) दिन
पोलका-संज्ञा, स्त्री० । सं० ) पहेली, रात के ८ सम भागों में से एक
बुझौवल, एक थलंकार ( काव्य.)। प्रहरपना, प्रहरला --अ० के० दे० (सं० प्रहाद - संज्ञा, पु. ( स० ) प्रहलाद (दे०)। प्रर्षण) प्रसन्न, हपित या आनंदित होना।
अनन्द, प्रमोद, हिरण्यकशिपु का पुत्र, एक प्रहरमा कालका--संज्ञा, स्त्री. (सं० ) १४
भक्त दैत्य।
प्रह - वि० (सं०) नम्र विनीत, आसक्ता । वर्णो का एक वर्ण वृत्त (पि० ।
प्रवीका--संज्ञा, स्त्री० (सं०) पहेली। प्रहरी--वि० (सं० प्रहरिन् । हस, पहरा
प्रांगणा, प्रांगन--(दे०) संज्ञा, पु० (सं०), (दे०) चौकीदार, पहरेदार डियाजी, पहर
| आँगन, सहन, घर के बीच का खुला भाग । पहर पर घंटा बजाने वाला
प्रांजर-वि० (सं० ) सीधा, सरल, सञ्चा, प्रहर्ष - संज्ञा, पु० (सं० श्रानंद. प्रसन्नता। समान । प्रहर्षण--- संज्ञा, पु० (सं०) आनंद, एक प्रांत-संज्ञा, पु. (सं०) अंत, छोर, किनारा, अर्थालंकार जिसमें अकस्मात बिना यत्न सीमा, दिशा, सूबा, ज़िला, प्रदेश, श्रोर, के सभीष्ट फल की प्राहि का वर्णन हो. एक सिरा खंड। वि० प्रांतिक । पर्वत, प्रहरमान (दे०)वि०.-महषित, प्रांतर-संज्ञा, पु. ( सं० ) अंतर. बिना छाया प्रहपण। ६ । “ राम ग्रहण गिरि पर का मर्ग, या बन, दो प्रदेशों के मध्य की छाये"-रामा० ।
खाली जगह । प्रहर्षणी- संज्ञा स्त्री०(सं०) एक वर्ण वृत्त पिं०) प्रांतीय, प्रांतिक- वि० (सं० ) किसी एक प्रहसन--संज्ञा, पु. ( सं० ) परिहास, प्रांत संबंधी । संज्ञा, स्त्री-प्रान्तीयता, हँसी-दिल्लगी चहल, नाटक या रूपक के | प्रांतिकता। १० भेदों में वह भेद जोहान्यमय और प्राकाम्य-संज्ञा, पु० (सं०) भाँति की हास्यरस-प्रधान हो (नाटय ) ।
सिद्धियों में से एक। प्रहार- संचा, पु० (सं० ) चोट, श्रावात | प्राकार-संज्ञा, पु० (सं०) कोट, परकोटा, भार, वार।
| शहर-पनाह, नगर-रक्षक, प्राचीर ।
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