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प्रणवना
१९६८
प्रतिकारक प्रण घना--स० क्रि० दे० (सं० प्रणमन) प्रतंचा -संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० प्रत्यंचा) नमस्कार या प्रणाम करना, नम्रीभूत होना। धनुष की डोरी या रोदा, ताँत ।
" पुनि प्रणवौं पृथुराज समाना"-- रामा०। प्रतच्छ--वि० दे० ( सं० प्रत्यक्ष ) प्रणाम-संज्ञा, पु. ( सं० ) नमस्कार, प्रणि- | प्रत्यक्ष, सम्मुख, सामने, परतन्छ (दे०)। पात, प्रनाम, परनाम (दे०)। " करौं । प्रतनु- वि० (सं० ) हीण, दुर्बल, बारीक, प्रनाम जोरि जुग पानी"-रामा। __ महीन, पतला, बहुत छोटा। प्रणामी-वि० (सं०) नमस्कारी, देवताओं प्रतपन-संज्ञा, पु. ( सं० ) तप्त करना, के प्रणामार्थ दक्षिणा।
| उत्ताप, गर्मी। प्रणायक-संज्ञा, पु० (सं०) नेता, मुखिया। | प्रतप्त-वि० (सं०) उष्ण, गर्ग, तपा हुआ। प्रणाल--संज्ञा, पु० (सं०) पनाला, मोरी, नाली। प्रादेन संज्ञा, पु० (सं०) दिवोदास का पुत्र प्रणाली-संज्ञा, स्त्री० ( सं०) जल के दो काशी का राजा, विष्णु, एक ऋषि । भागों का संयोजक, पनाली, मोरी, जल- | प्रतल-संज्ञा, पु० (सं०) सातवाँ पाताल । मार्ग, नाली, रीति, विधि, परम्परा, चाल, प्रतान – संज्ञा, पु० सं०) विस्तार, कुटिल तंतु । पृथा, तरीका, ढंग।
__'लता प्रतानोग्रथितैः सकेशैः'-रघु० । प्रणाशी, प्रणाश--संज्ञा, पु. ( सं०) ध्वंस, प्रताप-संज्ञा, पु० (२०) ताप, तेज, पौरुष नाश, उत्पात ।
बल, प्रभाव, ऐश्वर्य पराक्रम, गर्मी वीरता। प्रणाशन--संज्ञा, पु. (सं०) नाश करने का
प्रतापसिंह ---संज्ञा, पु० (स०) चित्तौड़ के भाव या किया, संज्ञा, पु० प्रणाशक
महाराणा उदयसिंह के पुत्र जिन्होंने धर्म
रक्षा के हेतु अपार दुःख सहे (इति)। विनाशक । वि० प्रणाशनीय ।
प्रतापी-वि० (सं० प्रतापिन् ) तेजवान, प्रणिधान--संज्ञा, पु० (सं०) समाधि, रखा
प्रभावी, ऐश्वर्यवान, सताने वाला। जाना, अत्यंत भक्ति, श्रद्धा या प्रेम, ध्यान, या मन की एकाग्रता, प्रयत्न । " ईश्वर प्रणि
प्रतारक-संज्ञा, पु० (सं०) धूत्त, छली, ठग,
चालाक, वंचक । धानाद्वा"... योग।
प्रतारण--- संज्ञा, पु. (सं०) धूर्तता, छल, प्रणिधि--संज्ञा, पु० (सं०) दूत, चर, प्रार्थना! ।
ठगी, चालाकी, वंचकता । स्त्री० प्रतारणा । प्रणिपात-संज्ञा, पु. ( सं० ) प्रणाम ।
प्रतारित-- वि० (सं०) ठगा या छला हुआ। "अभूच्च नम्र प्रणिपात शिक्षया"-रधु० ।।
| प्रतिचा-संज्ञा, खो० दे० ( सं० पतंचिका ) प्रणिहित-वि० (सं०) रक्षित, स्थापित, धनुष की डोरी, रोदा, तांत, ज्या, चिल्ला । समाहित, मनोयोग कृत।
प्रति-- अव्य. (सं०) भोर, सामने, एक प्रणी-वि० (सं० प्रगिन ) अटल प्रण या उपसर्ग जो शब्दों के पहले लगाने से दृढ़ प्रतिज्ञा वाला।
अर्थ देता है । विपरीत---(प्रतिकूल ) प्रणीत-संज्ञा, पु० (सं०) निर्मित, रचित, हर एक (प्रत्येक ), सामने (प्रत्यक्ष )
बनाया हुआ, संशोधित, भेजा या लाया हुआ। बदले में ( प्रत्युपकार ) मुकाबिला में प्रणेता-संज्ञा, पु. ( सं० प्रणेत् ) निर्माण (प्रतिवादी) समान (प्रतिनिधि) । सम्मुख,
कता, रचयिता, बनाने वाला । स्त्री० प्रणेत्री। ओर, हेतु । संज्ञा, स्त्री० (सं०) नकल । प्रणय-वि० (सं०) वशवर्ती, प्राधीन, प्रतिकार--संज्ञा, पु० (सं०) बदला, जवाब । लौकिक, संस्कारयुक्त।
प्रतिकारक-संज्ञा. पु. (सं०) बदला चुकाने प्रणोदित-वि० यौ० (सं०) प्रेरित । वाला।
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