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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्याजी गोल गाँठ वाला एक तीब्र बुरी गन्ध वाला कन्द । प्याजी - वि० ( फ़ा० ) हलका गुलाबी रङ्ग, पियाजी (दे० ) । प्यादा - संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) पैदल, दूत, सेवक, पियादा (दे० ) । " रहिमन सीधी चाल तें, प्यादा होत वज़ीर" । ११६३ याना -- स० क्रि० दे० (हि० पिलाना ) पिलाना, वियाना, पियावना (दे०) । प्यार - संज्ञा, पु० दे० ( स० प्रीति ) स्नेह प्रेम, चाह, पियार ( ग्रा० ) । प्यारा - वि० दे० (सं० प्रिय) प्रेम-पात्र, प्रिय, स्नेही, भला जान पड़ने वाला, पियारा । स्त्री०प्यारी पियारी । (दे०) प्याला - संज्ञा, पु० ( फा० छोटा कटोरा, बेला, पियाला (दे०), तोप बन्दूक आदि में रञ्जक और बत्ती लगाने का स्थान | स्त्री० पा० प्याली, पियाली (दे० ) । प्यावना - 1 सु० क्रि० दे० ( हि० पिलाना ) पिलाना, पियावना, वियाना (ग्रा० ) । प्यास-संज्ञा, स्रो० दे० (सं० पिपासा ) तृषा, तृष्णा, पियास ( ग्रा० ) वि० पु० वि० त्रो० प्यासी । प्यासा, प्यासा -- वि० दे० (सं० पिपासित ) पियासा (दे० ) तृषित, प्यास- युक्त । स्त्री० प्यासी । प्यो- संज्ञा, पु० दे० ( हि० पिय ) स्वामी, पति । "यो जो गयो फिरि कीन्ह न फेरा"। प्योसर - प्योसरी - संज्ञा, पु० दे० ( सं० पीयूष ) नई व्यायी भैंस या गाय का दूध, उससे बनी मिठाई | 'यांसार—†संज्ञा, पु० दे० ( सं० पितृशाला ) स्त्री के पिता का घर, मायका, पीहर । प्योर - संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रिय ) प्रियतम, पति, स्वामी । प्रकोप - संज्ञा, पु० (सं०) कंप, कँपकँपी । वि० प्रकम्पिता - काँपता हुआ | संज्ञा, पु० (सं० ) प्रकम्पन, वि० प्रकंपनीय | प्रकाश प्रकट - वि० (सं०) व्यक्त, स्पष्ट, उत्पन्न, प्रत्यक्षीभूत, विदित, प्रगट (दे० ) प्रकटन -संज्ञा, पु० (सं०) उत्पन्न होना, प्रगटना, व्यक्त होना । वि० प्रकटनीय । प्रकटित - वि० (सं०) प्रगट, स्पष्ट किया हुआ । प्रकर - संज्ञा, पु० (सं०) फैले हुये कुसुम आदि, समूह, दल | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरण - संज्ञा, पु० (सं० ) प्रसङ्ग, विषय वृत्तान्त प्रस्ताव, अभिनय करने की रीति, रूपक का भेद ( नाव्य०), ग्रन्थ- सन्धि, ग्रन्थविच्छेद, निरूपणीय विषय की समाप्ति, एकार्य वाचक सूत्रों का समूह ( व्या० ) कांड, सर्ग, अध्याय, ग्रन्थ का छोटा भाग । प्रकरी - संज्ञा, स्त्रो० (सं०) एक तरह का गाना, नाटक में प्रयोजन-सिद्धि के पाँच भेदों में से एक, नाटक खेलने की वेदी (नाट्य ० ) कुछ काल तक चल कर रुक जाने वाली कथा वस्तु | प्रकर्ष - संज्ञा, पु० (सं० ) उत्तमता, उत्कर्ष, बहुतायत, अधिकता, वदाव, वाहुल्य | संज्ञा, स्त्री० प्रकर्षता - उत्कृष्टता | प्रकला - संज्ञा, स्त्री० (सं०) समय का साठवाँ भाग (ज्यो०)। प्रकाण्ड - वि० (सं०) बहुत विस्तृत या बड़ा । प्रकाम वि० (सं० ) यथेष्ट, यति, मनमाना । "प्रकाम विस्तार फलं हरिण्या " - रघु० । प्रकार—संज्ञा, पु० (सं०) भाँति, तरह, किस्म, भेद । परकार (दे० ) | संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्राकार) घेरा, परकोटा, शहर - पनाह ( फ्रा० ) । प्रकारान्तर - वि० यौ० (सं० ) अन्य विधि या भाँति, धन्य रीति, दूसरी तरह । प्रकाश - संज्ञा, पु० (सं० ) परकास (दे०) उजेला, दीप्ति, रोशनी, थालोक, प्रकास (दे०), कांति, ज्योति, अभिव्यक्ति, विकास, श्रामा, प्रसिद्धि, ग्रन्थ का भाग, अध्याय, घाम, रुफुटन, प्रकट या गोचर होना । वि० प्राकाश्य । वि० प्रकाशित | संज्ञा, पु० प्रकाशक । - For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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