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पेशकार करना-आगे या सामने रखना, दिखाना, । पेशावर-संज्ञा, पु. ( फा०) व्यवसायी, भेंट करना। पेश जाना या चलना- व्यौपारी, रोजगारी, एक शहर (पंजाब)। वश या बल चलना।
पेशी- संज्ञा, स्रो० (फा०) सामने होने की पेशकार-संज्ञा, पु. ( फा०) पेस्कार क्रिया, मुकदमें की सुनवाई । संज्ञा, स्त्री० (दे०) एक कर्मचारी जो हाकिम के सामने (सं०) तलवार का म्यान, वज्र, गर्भाशय, काग़ज रखे। संज्ञा, स्त्री० पेशकारी-पेश- बच्चेदानी, शरीर की मांस की गिलटियाँ, कार का काम।
या गाँठे। पेशखेमा-संज्ञा, पु. (फ़ा०) फौज़ का आगे | पेश्तर-क्रि० वि० ( फा० ) प्रथम, पहले । भेजा जाने वाला सामान, अग्रसेना, हरावल पेषण-संज्ञा, पु० (सं०) पीसना । वि० (प्रान्ती०), घटनादि का पर्व लक्षण ! पेषक, पेषित, पेषणीय । पेशगी-संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) अगाऊ, अगौड़ी, पेषना-क्रि० स० दे० (सं० पेषण ) पेखना। प्रथम (आगे), दिया धन, पेसगी (दे०)। पेस* --- क्रि० वि० (दे०) (फा०) पेश, श्रागे । पेशतर-क्रि० वि० ( फ़ा० ) प्रथम, पूर्व। पेहँटा- संज्ञा, पु० (दे०) कचरी नामकलता पेशबंदी-संज्ञा, स्त्री. (फा० ) प्रथम या और उसके फल, सेंधिया. ( प्रान्ती.) पूर्व से किया हुश्रा प्रबन्ध या बचाव की | पंजनी, पैजनियाँ - संज्ञा, स्त्री० (हि० पायं-- युक्ति, भूमिका ।
अनु० झन-झन) पायजेब, पैर का बजनेवाला पेशराज-संज्ञा, पु० (फा० पेश+राज = घर गहना। 'चूनरि बैजनी पैंजनी पायन"--द्वि०।
बनानेवाला हि०) इंट-पत्थर ढोनेवाला मजदूर। पैंठ - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० परायस्थान ) हाट, पेशवा-संज्ञा, पु० (फा०) पेवा (दे०) सर दुकान, बाजार, बाजार का दिन। "लेना हो दार, नेता, अगुवा, प्रधान मन्त्री की उपाधि सो लेय ले, उठी जात है पैंठ"--कबी। (महाराष्ट्र राज्य में )।
पैठौर-संज्ञा, पु० दे० ( हि० पैंठ-+ठौर) पेशवाई-संज्ञा, स्त्री० (फा०) किसी बड़े दूकान, वाज़ार या दुकान का स्थान ।
आदमी का आगे बढ़ कर स्वागत करना, । पैड-पंडा-संज्ञा, पु० दे० (हि० पाय+ पेसवाई (दे०) अगवानी। संज्ञा, स्त्री० ड-प्रत्य०)मार्ग, पंथ, रास्ता, डग, कदम । (हि. पेशवा+ई-प्रत्य०) पेशवा का मुहा०-पैंड़े परना-पीछे पड़ना, बारम्बार कार्य या पद, पेशवा की शासन-प्रणाली। तंग करना । घुड़साल, प्रणाली। पेशवाज़-संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) नाचते समय पैंत -संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पणकृत)
पहिनने की वेश्याओं की पोशाक या घाँघरा। दाँव, बाजी। पेशा-संज्ञा, पु० ( फा०) उद्यम, रोज़गार, पैंती-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पवित्र ) ब्यवसाय, जीविकोपाय।
श्राद्धादि के समय अँगुलियों में पहिनने पेशानी-संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) माथा, ललाट, । के कुश के छल्ले, पवित्री, पँइती (ग्रा०), मस्तक, भाग्य।
दाल, (प्रान्ती. ) पॅहिती। पेशाब-संज्ञा, पु. (फा०) पेसाब (दे०) पै-*-श्रव्य० दे० (सं० पर ) पर, परंतु, मूत्र, मूत (दे०) । मुहा०-पेशाब करना। लेकिन, अवश्य, निश्चय, पीछे, बाद । "जो -मूतना, हेय या तुच्छ समझना । पेशाब पै कृपा जरै मुनि गाता"-- रामा० । यौ.. से चिराग जलना-बड़ा प्रतापी होना। जोपै- यदि, अगर । ( विलो०-तो-तो पेशाबखाना-संज्ञा, पु० (फा०) मूत्रालय, फिर -करण और अधिकरण, की विभक्ति मूतने की जगह।
(ब्र० भा०) पर, से । “मोपै निज भोर
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