SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पुगरेणु पृग पुष्परेणु-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) पराग! पुष्कर ) तालाब. जलाशय । “पुहुकर पुण्डपुष्पवती-वि० स्त्री० (सं०) ली हुई फूल- रीक पूरन मनु खंजन कलि पगे"-सूर० । युक्त. रजोवती, रजस्वला पहप-पुहुए -संज्ञा, पु० दे० ( सं० पुष्प ) पुष्पवाटिका-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) फुल- फूल । " सुनिये विटप प्रभु पुहुप तिहारे वादी। “पुष्पवाटिका, बाग वन''- रामा०। हम"--श्रमीश० । पुरावाण- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कामदेव । पुहमी-पहुमी*---संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० भूमि) पुष्पवृष्टि-संज्ञा, स्त्री० यौ० सं०! फूलों की भूमि, पृथ्वी । वर्षा। "अवाङ्मुखस्योपरि पुष्पवृष्ठि '- रघु०। पुहुपराग-संज्ञा, पु० दे० (सं० पुष्पराग ) पुष्पशर-संज्ञा, पु० यौ० (स०) कामदेव । | पुष्पराग, पुखराज। पुष्पसार-संज्ञा, पु. (सं०) फूलों का मूल- पुहुपरेनु*-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० तस्व, इतर । पुष्परेणु ) पराग। पुष्पांजलि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) फूल- पहबी---संज्ञा, स्त्री० (दे०) पृथ्वी (सं.)। भरी अंजुली, देवार्पित सुमनाञ्जलि। पँग न-पूँगीफल्त-संज्ञा, पु० दे० (सं० पुष्पिका-संज्ञा, स्त्री. (सं०) अध्याय के पूगीफल ) सुपारी, पूगीफल, प्रगफन । अन्तिम, समाप्ति-सूचक वाक्य जो इतिश्री पूँगी संज्ञा, स्त्री० (दे०) एक बाँसुरी, पेंगी। से प्रारम्भ होते हैं। -संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पुच्छ । पुच्छ, पुष्पित-वि० (सं० विकम्पित, फूला हुआ। दुम (उ०), लांगूल, अंतिम भाग, पिछलग्गू, पुष्पिताग्रा-संज्ञा, स्त्री० सं०) एक अर्धसम | पुछल्ला उपाधि ( व्यंग्य ) ।। छंद (पि.)। पूँछतांछ पूलपाछ-संज्ञा, स्त्री० (दे०) प्रकपुष्पेषु-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कामदेव। ना, जाँच पड़ताल, तहकीकात, दफ़्त । पुष्पोद्यान-संज्ञा, पु. यौ० (स०) फुलवाड़ी | पूँकना-पूछना-स० कि० दे० (सं० पुच्छण) पुष्य- संज्ञा, पु. (सं०) पोषण, पुष्टि. सार प्रश्न करना, दर्याप्त करना, जिज्ञासा करना, वस्तु, वाण की आकृति वाला ८ वाँ नक्षत्र | पोंछना, साफ़ करना। (ज्यो० ) तिष्य, पुस ( पौष मास । पूँजी--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पुब्ज ) धन, पुष्यमित्र-संज्ञा, पु० (सं०) मौर्यों के बाद संपति. जमा-जथा (दे०), व्यापार में लगा शुङ्गाज-वंश का स्थापक एक राजा (मगध)। धन, किसी विषय में योग्यता, समूह । पुसाना-अ० कि० दे० (हि० पोसना ) | पंजीदार--संज्ञा, पु० दे० ( हि• पूँजी+ पूरा पड़ना, शोभा देना, उचित जान पड़ना, दार-फा०) धनवान. रुपये वाला. महाजन । अच्छा लगना, बन पड़ना। प्रतीत-सज्ञा, पु० दे० यौ० (हि० पूँजी+ पुस्त*1-संज्ञा, स्त्री० (दे०) पुन (फ़ा०)। पति-- सं०) धनवान, रुपये वाला. महाजन, पुस्तक-सज्ञा, स्त्री० (सं०) किताब, पोथी। __ पूंजी रखने या लगाने वाला, पूंजीदार । स्रो० अल्पा-पुस्तिका। पूंट-- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पृष्ठ ) पीठ, पृष्ठ । पुस्तकाकार-वि• यो० (सं०) किताबनुमा प्रथा-पुत्रा--संज्ञा, पु० दे० (सं० पूप) (फा०) पोथी के रूप या बनावट का। मीठी पूड़ी, मालपुमा, अपप (सं.)। पुरु कालय-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) कुतुब- प्रखन --- संज्ञा, पु० दे० (सं० पोषण) पोषण, खाना, (फ़ा०) लाईबेरी अं०) किताबों के पालन, पूषण (सं०) सूर्य । रखने का घर, पुस्तकों का संग्रहालय। । पूग-संज्ञा, पु० (सं०) सुपारी (वृत्त या फल) पुहकर-पुहुकर* - संज्ञा, पु० दे० (सं० समूह, राशि, ढेर, कम्पनी अं०) संघ, छंद । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy