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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पुतलिका - पुत्तरिका पुत्री) कन्या, लड़की, बेटी, पुतली । " क्रीड कला- पुत्तली" - प्रि० प्र० । पुतलिका पुतरिका -संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पुत्रिका ), गुड़िया, पुतली, पुत्री । पुत्र - संज्ञा, पु० (सं०) लड़का, बेटा, पूत (दे०) पुतौना (ग्रा० ) । ११३९ पुनर्नवा | पुनःपुनः - भव्य ० यौ० (सं०) फिर फिर, बारबार, मुहुर्मुहुः । "जायन्ते च पुनः पुनः", स्फु० | पुनि-पुनि (दे० ) । पु० यौ० (सं०) पुनः संस्कार - संज्ञा, दोबारा संस्कार । पुन – संज्ञा, पु० दे० ( सं० पुण्य ) पुन्य दान, धर्म-पुन्न, पुण्य । • पुनरपि - क्रि० वि० (सं०) फिर भी, दुबारा भी । पुनरपि जननं पुनरपि मरणं" चर० । पुनरबसु संज्ञा, पु० दे० (सं० पुनर्वसु ) पुनर्वसु नामक नक्षत्र ( ज्यो० ) । पुनरागमन - पुनरागम-- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) फिर जन्म, दोबारा जन्म. फिर श्राना । भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः " | पुनरावृत्ति - संज्ञा, स्त्री० यौ० घूमना, फिर से थाना, दुहराना, पढ़ना, किये काम को फिर करना, पुनरावृत्त ) | (" (सं०) फिर से फिर से पुत्रजीव, पुत्रजीवी संज्ञा, पु० (सं०) इंगुदी सा एक सुन्दर बड़ा पेड़ जिसकी छाल और बीज दवा में पड़ते हैं । 19 - रामा० । पुत्रवती - संज्ञा, स्त्री० (सं०) लड़केवाली, लड़कौरी, (दे०) जिसके लड़का हो, पूती (दे०) । ' पुत्रवती युवती जग सोई " - रामा० । पुत्रवधू -संज्ञा, त्रो० यौ० (सं०) लड़के की बी, पतोहू, बहू, । " मैं पुनि पुत्र वधू प्रिय पाई ' पुत्रवान पंज्ञा, पु० (सं० पुत्रवत् ) लड़केपाला, जिसके लड़का हो । स्रो० पुत्रवती । पुत्रार्थी - वि० यौ० (स०) संतान- कांक्षी, संतानेच्छु, पुत्राभिलाषी पुत्राकांक्षी | पुत्रिका - संज्ञा, त्रो० (सं०) लड़की, बेटी, गुड़िया, आँख की पुतली, मूर्ति, स्त्री का चित्र | त्रिणी – वि० स्त्री० (सं०) लड़के वाली, सम्तान-युक्ता, पुत्रवती मणी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) लड़की, बेटी, सुता, धनुजा, कन्यका । प्रवेट- संज्ञा, त्रो० यौ० (सं०) पुत्र प्राप्ति के लिये एक विशेष यज्ञ । प्रवीना-संज्ञा, पु० दे० ( फा० पोदीनः ) एक पौदा जो सुगंधित पत्तियों वाला, पाचक और रुचिकारक होता है। पोदीना । प्रदुगल- पुनल - संज्ञा, पु० (सं०) रूप. रस और स्पर्श गुणवाली वस्तु, शरीर (जैन० ), चैम्य पदार्थ, परमाणु ( बौद्ध ) आत्मा । :- श्रव्य ( सं० पुनर् ) फिर, पीछे, पश्चात् ( द्र० प्र०) उपरान्त, दोबारा, अनन्तर । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ( वि० पुनरुक्तवदाभास-संज्ञा, पु० (सं० ) एक शब्दालंकार जिसमें शब्द के अर्थ की पुनरुक्ति का केवल प्रभात हा प्रतीत हो । पुनरुक्तप्रकाश-संज्ञा, पु० (सं०) रोचकता के लिये शब्द का पुनर्प्रयोग (दास) । पुनरुक्ति संज्ञा, स्री० यौ० (सं०) एक बार कहे शब्द या वाक्य को फिर कहना, कथित - कथन, एक ही अर्थ में व्यर्थ शब्द के पुनः प्रयोगका काव्य-दोष | ( वि० पुनरुक्त) । पुनरुत्थान- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) फिर से उठना, दूसरी बार उठना, फिर उन्नति करना, पुनरुन्नति । For Private and Personal Use Only पुनर्जन्म -संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मर कर एक देह छोड़ दूसरी धारण करना, फिर उत्पन्न होना, पुनरुत्पत्ति । " पुनर्जन्म न विद्यते " । पुनर्नव - वि० (सं०) जो फिर से नया हो गया हो, गदहन्ना - ( औौष ० ) । पुनर्ना - संज्ञा, त्रो० (सं०) जो फिर से नया हो गया हो, गदापुन्ना, गदहपूरना ( श्रौष ० )
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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