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पातव्य १११३
पाथेय एंज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पातली ) रंडी, पतुरिया पातिशाह -संज्ञा, पु० दे० ( फ़ा. बादशाह )
*-वि० द० सं० पात्र - पतला) पतला। बादशाह । पातव्य-वि० ( सं० ) रक्षा करने या पीने के | पातु-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पातली ) योग्य।
वेश्या, रंडी, पतुरिया, पातुरी (दे०)। पातराज-संज्ञा, पु० दे० (सं०) सर्प विशेष। पात्र-संज्ञा, पु. ( सं० ) बरतन, भाजन, पातशाह-संज्ञा, पु० दे० ( फ़ा० पादशाह ) किसी विषय का अधिकारी, उपयुक्त, योग्य, बादशाह, राजा।
नाटक के नायक, नायिका आदि, नट, पाता*-संज्ञा, पु० दे०(हि० पत्ता ) पता। अभिनेता, पत्र, पत्ता। पाताखता-संज्ञा, पु० दे० ( हि० पात --- पात्रता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) योग्यता, क्षमता,
आखत ) पत्र और अक्षत, तुच्छ भेंट। संज्ञा, पु० पात्रत्व । पाताबा-संज्ञा, पु. (फ़ा०) पाँवों में पहनने पात्रदुष्टरस--संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) एक का मोज़ा।
प्रकार का रस-दोष जिसमें कवि अपने पातार, पाताल-संज्ञा, पु० (सं०) पताल समझे या जाने हुए विषय के विरुद्ध कह (दे०) पृथ्वी के नीचे ७ लोकों में से एक जाता है। लोक, अधोलोक, नाग लोक, गुफा. विवर पात्री--- संज्ञा, स्त्री० (सं० ) छोटा बरतन, या बिल, मात्रिक छंदों की संख्या, कला बरतन वाला। गुरु लघु आदि का सूचक चक (पिं०) बड़वा- पात्रीय-वि० (सं०) पात्र का, पात्र संबंधी। नल । वि० पातालोय (दे०) पाताली। पाथ-संज्ञा, पु० (सं० पाथस् ) पानी, जल, पाताल-केतु ... संज्ञा, पु. यौ० (सं०), पाताल अग्नि, सूर्य, अन्न, वायु, श्राकाश । यौ० वासी एक दैत्य विशेष !
पाथनाथ -सागर । संज्ञा, पु० दे० (सं० पथ) पाता त-खंड-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पाताल । | राह, रास्ता, मार्ग, सागर। "पाथ नाथ पाताल-गरुड़-पाताल-गरुड़ी-संज्ञा, पु० नन्दिनी सों"--तु० । यौ० (सं० ) छिरैटा, छिरिहटा । पायना - स० कि० दे० (सं० प्रथन ) बनाना, पाताल-तंबी-संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) एक गढ़ना, सुडौल करना, ईटें या खपरे बनाना, लता विशेष ।
थोपना, कंडे बनाना, मारना पीटना, ठोंकना पातालनिलय-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक पीट या दबा कर बड़ी टिकिया बनाना।
दैत्य, सर्प, जिसका घर पाताल में हो। पानिधि-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० पाथोपातालनपति-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) सीता निधि ) समुद्र, सागर, पाथनाथ ।
धातु, पाताल का राजा, धातु । | पाथर*- संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रस्थर) पत्थर, पातालयंत्र-संज्ञा, पु. यौ० ( सं०) कड़ी "पाथर डारै कींच में, उरि बिगारै अंग"।
औषधों के गलाने या तेल निकालने का यंत्र। -- ० । पाति-पाती*-संज्ञा, खो० दे० ( सं० पत्र, पाथा संज्ञा, पु० दे० (सं० पाथस् ) जल, पत्री ) पत्ती, पत्ता, दल, पत्र, चिठ्ठी, । "रावन पानी अन्न, आकाश | स० क्रि० सा० भू. कर दीजो यह पाती"--रामा० ।
(हिं०) पाथना । पातित्य-संज्ञा, पु. ( सं० ) पतित होने का पाथि-संज्ञा, पु. ( सं० पाथस् ) समुद्र, भाव. पाप, दुराचार, अधःपतन।
आँख, घाव की पपड़ी, पितरों का जल । पातिव्रत-पातिव्रत्य-संज्ञा, पु. (सं०) पति- पाथेय-संज्ञा, पु. (सं०) राह या मार्ग का व्रता होने का भाव।
भोजन, राह-खर्च, संबल । भा० श. को०-१४०
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