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पागल
पागल - वि० (दे०) सिड़ी, बावला, विक्षिप्त, मूर्ख जिसका दिमाग या होश- हवास ठीक न हो स्त्री० पगली | संज्ञा, पु० पागलपन - उन्माद, मूर्खता, चित्तविभ्रम, इच्छा और बुद्धि का विकारक रोग ।
पागलखाना - संज्ञा, पु० दे० ( हि० पागल + ख़ान: - फ़ा० ) पागलों का औषधालय | पागा - संज्ञा, पु० (दे०) घोड़ों का समूह | वि० दे० ( हि० पागना ) पागा हुआ । पागुरी - संज्ञा, पु० दे० सं० रोमंथन ) जुगाली, खाए हुये को फिर से चबाना । पागुराना, पगुगना- अ० क्रि० दे० ( हि० पागुर ) जुगाली या रोमंथ करना, बातचीत
करना ।
पाचक - वि० (सं०) पकाने या पचाने वाला संज्ञा पु० (सं०) पाचन शक्ति वर्धक औषधि, रसोइया, पाँच पित्तों में से एक पाचन- अग्नि । पाचन - संज्ञा, पु० (सं०) पकाना, पचाना, खट्टारस, अग्नि, भोजन का शरीर की धातुयों में परिवर्तन, जठराग्निवर्धक औषधि, प्रायश्चित्त । वि० पाचक । स्त्री० रात्रिका | संज्ञा, स्त्री० गचकता, पाचकत्व | वि०पचाने वाला ।
पाचन शक्ति संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) वह शक्ति जो भोजन पचाती है, हाज़िमा । पाचना* – स० क्रि० दे० (सं० पाचन ) भली-भाँति पकाना | वि० पाचित । पाचनीय - वि० (सं०) पकाने या पचाने के योग्य, पाच्य ।
पान्काहां - संज्ञा, पु० दे० ( फ़ा० पादशाह ) बादशाह, बाच्द्राह ( ग्रा० ) । पाच्य - वि० (सं०) पाचनीय, पकाने या पचाने योग्य |
पात्र - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पाछना ) पोस्ता की बड़ी से क्रीम निकालने के हेतु नहनी से लगाया हुआ चीरा या किसी पेड़ में रस निकालने के हेतु लगाया हुआ
पाटन
चाकू का चीरा + संज्ञा, पु० दे० (सं० पश्चात् ) पीछा, पिछला भाग । क्रि० वि० (दे०) पीछे. पाछे ।
पालना -- स० क्रि० दे० (हि० पाछा) चीरना, चीरा लगाना ।
पाकुल- पालि - वि० दे० ( हि० पिछला ) पिछला, पीछे का, पीछे वाला ।
पान * - संज्ञा, पु० दे० (हि० पीछा ) पीछा । पाकी, पाळू, पाछ* --- क्रि० वि० (हि० पीछे ) पीछे, पश्चात् ।
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वाज - संज्ञा, पु० दे० (सं० पाजस्य ) पाँजर | पाजामा - संज्ञा, पु० (फ़ा० ) पैरों से कमर तक ढांकने का पाँवों में पहननेका सिला कपड़ा, इसके भेद हैं पेशावरी, नैपाली, सुथना, चूड़ीदार, अरबी, कलीदार, इजार, तमान यादि पतलून |
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पाजी -संज्ञा, पु० दे० (सं० पदाति रक्षक, पैदल सिपाही, पयादा, प्यादा, चौकीदार । वि० दे० (सं० पाय्य ) दुष्ट, लुच्चा, गुंडा । संज्ञा, पु० - पाजीपन ।
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पाज़ेब - संज्ञा स्त्री० (फ़ा० ) नूपुर, छागल | पाटंबर, पावर -संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) रेशमी कपड़ा, पटंबर (दे० ) । पाट कीट हाय, तातें पाटंबर रुचिर " रामा० । पाट - संज्ञा, पु० (सं० प्रह) रेशम, राजगद्दी, सिंहासन, पीदा, चक्की का एक पिल, कपड़ा वालों की पटियाँ फैलाव, नख, रेशम का कीड़ा एक प्रकार का सन, पीढ़ा। यौ०राज-पाट, पाटाम्बर - दे० पटंबर |
"(
जुगुल पाट घन-घटा बीच मनु उदय कियो नवसूर " - सूर० । नदी की चौड़ाई, चौड़ाई ( वस्त्रादि), भरना ।
पाटकृमि - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) रेशम का कीड़ा ।
पाटच्चर - संज्ञा, पु० (सं०) चोर, तस्कर ।
पाटन -
- संज्ञा, स्त्री० दे० हि० पाटना। पटाव, छत, पटनई (दे० ) । साँप के विष उतारने
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