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पहुढ़ना
पहुढ़ना- -- अ० क्रि० (दे०) पौढ़ना, लेटना, स० क्रि० पहुढाना प्रे० रूप पहुढ़वाना ! पहुना | संज्ञा, पु० दे० ( हि० पाहुना ) पाहुना, महिमान, मेहमान, पाहुन । अतिथि " पाहुन निसिदिन चार रहत सब ही के दौलत " - गिर० । पहुनई पहुनाई - संज्ञा, त्रो० दे० ( हि० पहुना + ई - प्रत्य० ) अतिथि सत्कार, महमानदारी, अतिथि होकर जाना या श्राना । " विविध भाँति होवै पहुँनाई । " रामा० पहुप | संज्ञा, पु० दे० ( सं० पुष्प ) पुष्प | पहुमी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० भूमि) भूमि । पहुला - संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रफुल्ल ) कुमुदिनी ।
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पहेली – संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० प्रहेलिका )
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htवल, गूढ़ प्रश्न या बात, फेर फार की बात, समस्या, किसी विषय या वस्तु का सांकेतिक वर्णन | कहत पहेली वीरबल, सुनिये अकबर शाह पु० पला । मुहा० - पहेली चुकाना – फेर फार या घुमा-फिरा कर अपने स्वार्थ की बात कहना । पह्नव - संज्ञा, पु० (सं०) एक प्राचीन जाति, जिसका निवास स्थान फारिस या ईरान
था ।
पह्नवी-संज्ञा, स्त्री० ( फा० वा सं० पहलव ) फारसी भाषा का प्राचीन रूप । पाँ-पाँइ - पाँउ-पय-संज्ञा, पु० दे० (सं० पाद) पाँव, पैर, पद | "पाँ लागौं करतार " ! पाँइता - संज्ञा, पु० दे० ( हि० पाँयता ) पाँवता, पाँव की थोर, पैंता, पैताना ( प्रा० ) पांयता।
पाँई बाग - संज्ञा, पु० यौ० ( फा० ) राज महल के चारों ओर स्त्रियों की पुष्प वाटिका, या फुलवाडी ।
पाँक- संज्ञा, पु० दे० (सं० पंक) पंक, कौंच, कीचड़, काँदो (ग्रा० ) |
पाँख | - संज्ञा, पु० दे० (सं० पक्ष ) पक्ष, भा० श० को ० - १३8
पाँचर
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पंख पर
पट पाँखे भख काँकरे, सदा
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परेई संग - वि० ( ग्रा० पानी बरसने के पूर्व वायु का शब्द विशेष । मुहा०(ग्रा० ) पाँख बोलना - वर्षा के पूर्व वायु में शब्द विशेष होना ।
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-मन्ना० ।
पाँखड़ी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पंखड़ी ) पँखड़ी पँखुरी, पाँखुरी, पाँखड़ी । “पाँखड़ी गुलाब केरी काँकड़ी समान गर्दै " "पुसपानि की पाँखुरी पाँपनि मैं" - रघु० । पाँखी -संज्ञा स्त्री० दे० (सं० पक्षी ) पतिंगा, पक्षी, चिड़िया ।
पाँखुरी | संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पंखड़ी ) पँखड़ी, पुष्प पत्र, फूल की पत्ती या पत्ता । पाँग - संज्ञा, पु० (दे०) कछार, खादर । पाँगा - पाँगानोन- संज्ञा, पु० दे० (सं० पंक ) सामुद्रीय या समुद्री नमक !
पाँगुर -- वि० दे० (सं० पंगु ) लँगड़ा, पंगुश्रा । संज्ञा, पु० (दे०) लँगड़ा मनुष्य | "पाँगुर को हाथ-पाँव, धरे को श्राँख है" - विन० । पाँच - वि० दे० (सं० पंच ) चार और एक की संख्या, या अंक ( ५ ) लोग, पंच । "तुम परि पाँच मोर हित जानी" - रामा० । पाँचहि मार न सौ सके " - वृ० । मुहा० - पांचों अँगुलियाँ घी में होना - सब प्रकार का धाराम या लाभ होना, अच्छी बन पड़ना । पाँचों सवारों में नाम लिखना -- श्रेष्ठों में अपने को भी गिनना । पांडव, जाति के मुखिया, जन-समूह | पाँचक संज्ञा, पु० दे० (सं० पंचक ) धनिष्टा से लेकर पाँच नक्षत्र |
पाँचजन्य - संज्ञा, पु० (सं० अग्नि कृष्ण, या विष्णु का शख । पाँचजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनंजयः "... गीता० ।
6.
पांचभौतिक, पञ्चभौतक- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पाँचों तत्वों या भूतों से बना शरीर । पाँचर - संज्ञा, स्त्री० (दे०) पच्चड़, लकड़ी
का टुकड़ा ।
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