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पसारी
११०२
पहपटहाई पसारी-संज्ञा, पु० दे० (हि. पंसारी) | पह*-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० पो) पासला, पंसारी, किराने और औषधों का दुकानदार। प्रकाश की किरण। पसाव-पसावन-संज्ञा, पु० दे० (हि.पहचानवाना-स० क्रि० दे० (हि० पहचानना पसाना ) चाँवलो का माँड़, पीच, पानी। का प्रे० रूप ) किसी से पहचानने का कार्य पसहनि-संज्ञा, स्त्री० (दे०) अंगराग।। काना। पसित-वि० (दे०) बँधा हुआ, (सं०) पहचान-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्रत्याभिज्ञान) पाशित ।
लक्षण, निशानी, परिचय, चिन्ह, चीन्हा, पसीजना-अ.क्रि० दे० (सं० प्र+स्विद) चिन्हारी, भेद समझने की शक्ति । स्वेद या पसीना निकलना, पानी रसना, | पहचानना-- स० क्रि० दे० ( हि० पहवान) करुणा या दया से द्रवीभूत होना। चीन्हना, गुण विशेषतादि से परिचित होना, " नैननि के मग जल बहै, हियो पसीज अभिज्ञान, भेद, समझना। पसीज"-वि०।
पहटना-प्र. क्रि० दे० (सं० प्रखेट) पसीना-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रस्वेदन ) | खदेड़ना, पीछा करना, धार पैनी करना । स्वेद, प्रस्वेद, श्रमवारि, गर्मी से निकला पहटा-संज्ञा, पु. (दे०) खेत चौरस करने हुमा देह का जल।
का लकड़ी का तख़्ता, हेंगा ( प्रान्ती० )। पसुरा-पसुली-*T सज्ञा, स्त्रा० द० (हि० स० कि० (दे०) पहटाना। पसली ) पसली, छातो की हड्डी, पाँसुरी। पहन-संज्ञा. प. दे० (सं० पाषाण ) पसज-संज्ञा, स्त्री० (दे०) सीधी सिलाई ।
पाहन, पत्थर, पाषाण पसजना-स० क्रि० (दे०) सोधी सिलाई
पहनना, पहिनना-स० क्रि० दे." (सं.
परिधान ) शरीर पर धारण करना, परिधान पसेउ-पसेऊ, पसेव-+-संज्ञा, पु० दे०
करना (प्रे० रूप ) पहनवाना, स० क्रि० (हि० पसेव) पसीना, स्वेद, प्रस्वेद, श्रमवारि।
पहनाना। "पोंछि पसेऊ बयारि करौं”-कवि० । पसेरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पांच + सेर ...
पहनाई-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पहनाना ) ई०-प्रत्य० ) पंसेरी, पांचसेर का बाट।
| पहनाने की क्रिया या मज़दूरी। पसोपेश-संज्ञा, पु० (फा० ) श्रागा-पीछा,
पहनाना-स. क्रि० दे० ( हि० पहनना ) सोचविचार, हनि लाभ, ऊँच-नीच दुविधा।
किसी को वस्त्र-भूषणादि धारण कराना। पस्त-वि० (फा०) हारा, थका, दबा हुआ।
पहनाव-पहनाधा- संज्ञा, पु० दे० ( हि० पस्तहिम्मत-वि. यो० (फा०) कादर,
पहनना ) मुख्य वस्त्र, पोशाक, परिच्छद, कायर, डरपोक, भीरु । संज्ञा, स्त्री० पस्त
कपडे पहनने की रीति या चाल । हिम्मती।
पहपट -- संज्ञा, पु० (दे०) स्त्रियों के गाने का पस्ती बाबूल-संज्ञा, पु० दे० (दे० पस्सी
एक गीत, हल्ला-गुल्ला, शोर, कोलाहल, हि० बबूल ) एक पहाड़ी बबुल ।
घोष, बदनामी का शोर, छल । पह–अव्य० दे० (सं० पार्श्व ) समीप, पहपटबाज़-संज्ञा, पु० दे० (हि० पहपट+ निकट, पास से । " खर-दूखन पहँ गई बिल- वाज़ फ़ा०) शरारती झगड़ालू , ठग, धोखेखाता"-रामा०।
बाज़ । संज्ञा, स्त्री० पहपटबाजी।। पहँसुल-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्रत झुका पहाटहाई।-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० हुमा+शूल) तरकारी काटने का हँसिया।। पहपट+हाई-प्रत्य०) झगड़ा कराने वाली।
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