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परोपकार २०१३
पर्णकुर्च परोपकार-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) उपकार. पर्चा-संज्ञा स्त्री० (दे०) पुरजा, परख, जाँच,
दूपरों की भलाई या हित का कार्य । परीक्षा, अनुभव, चिन्हान, परिचय, परचौ परोपकारी-संज्ञा, पु. यौ० (सं० परोप- (दे०)। संज्ञा पु. (फ़ा०) टुकड़ा, परीक्षा कारिन्) दूयरों का हित या भलाई करने । का प्रश्न या उत्तर-पत्र । वाला. उपकारी स्त्री० परोपकारिणी। | पर्चाना-स० क्रि० (दे०) मिलाना, भेंट या परोपदेश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दूसरों को परिचय कराना, हिलाना। शिना देना, हित की बात कहना "परोप- पर्चन- संज्ञा पु० (दे०) यौ० (सं० परचूर्ण) देशेपांडित्य सर्वेषाम् सुरं नृणाम्"। चावल, पाटा,दाल और मसाला आदि भोजन परोपदेशक - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दूसरों की सामग्री या सामान, परचून-(प्रा०)।
को शिक्षा देने वाला, दूसरों से हित की पर्चनिया-संज्ञा, पु. (दे०) श्राटा, दाल बात कहने वाला।
श्रादि बेचने वाला मोदी। परोना स० क्रि० दे० (हि० पिरोना, पिरोना | पर्चुनी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) पाटा दाल आदि पोहना।
का व्यापार. मोदी का काम । परोग्गा स० कि. (दे०) जादू या मंत्र पचनी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) छोटा छप्पर, पढ़ कर फूंकना।
छोटी छानी, परछती (ग्रा०)। परोरा-संज्ञा, पु० (दे०) परवल ।
पळ- संज्ञा, पु० (दे०) तकुत्रा. तेकुवा (ग्रा०) परोल- सज्ञा, पु० दे० (अ० पराल) सानका सूजा. जला हुमा धान. मिट्टी का धड़ा। का संकेत शब्द जिसके कहने से आने-जाने पाई-संज्ञा स्त्री० (दे०) (सं० प्रतिछाया) में रुकावट नहीं होती।
प्रति-विंब, बाया, परछाहीं।। परोप-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रतिवास) पडोमा पर्जक पजंक-संज्ञा, पु० दे० (सं० पर्यक) यौ० म.गराम । “ परबस परे परोस
पलंग बड़ी चारपाई, प्रजंक (दे०) । बमि. परे मामिला जान "-वृ।
पर्ज-संज्ञा, स्त्री०(दे०) एक रागिनी (संगीत)। परामना-स० कि० दे० (हि० परसना)
पर्जनी संज्ञा, स्त्री० (सं०) दारुहलदी। परसना भोजन देना, परसना।
पर्जन्य-संज्ञा, पु० (सं० ) इंद्र, विष्णु, परासा-सज्ञा, पु० दे० (हि० परोसना) एक
मेघ, बादल, परजन्य (दे०)। " परजन्य व्यक्ति के भोजन का पूरा स मान, पत्तल ।
जथारत है दरपौ'-घना।। परमा (ग्रा०)।
पर्ण- संज्ञा, पु० (सं०) वट-पत्र, पत्ता, पत्ती, परोमी-पड़ोसी-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रति
| पात (ग्रा.), पन (दे०) पाना।। वासी) पड़ोस में रहने वला। स्त्री० परोसिन । "प्यारे पदमाकर परोसिन
| पर्णक पूर- संज्ञा, पु० दे० यौ० सं० पर्णकपूर)
पान-कर, कपूर-पान । हमारी तुम।” परासया-संज्ञा, पु० दे० (हि. परसना) पर्ण कार-संज्ञा, पु० (सं०) बरई. तमोली। परसने या परोसने वाला, परमैया (ग्रा०)। पर्णकुटी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) पर्णशाला, परोहर-संज्ञा, पु० दे० (सं० परोहण) पत्तों का झोपड़ा या झोपड़ी, पर्न कुटी। सवारी गाड़ी श्रादि यान वाहन ।
" रघुबर पर्णकुटी तहँ छाई।"-रामा। परोहा-- संज्ञा, पु० (दे०) चरस, पुरः परश्वः कुर्च-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) व्रत विशेष (सं०) पानी भरने का चमड़े का थैला। जिसमें ढाक, गूलर, कमल और बेल के पकटी-संज्ञा स्त्री० (दे०)पाकर नामक वृक्ष। पत्तों का काढ़ा ३ दिन तक पिया जाता है।
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