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परिवृत्ति
परिसंख्या परिवृत्ति--संज्ञा, स्त्री. (सं०) वेष्टन, घेरा, । परिशेष-वि० (सं०) बाकी, बचा हुआ। घुमाव, चक्कर, समाप्ति, बदला, अर्थान्तर, संज्ञा, पु० (सं०) अवशेष, परिशिष्ट, अन्त । बिना शब्द परिवर्तन (व्या०)। संज्ञा, पु० परिशोध - संज्ञा, पु० सं०) पूरी सफाई, पूर्ण एक अलंकार जिसमें लेन-देन या विनिमय शुद्धि, चुकता, बेबाकी । का कथन हो (१० पी०)।
परिशोधक-संज्ञा, पु. (सं०) चुकता या परिवृद्धि-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) परिवर्द्धन । बेबाक करने वाला, सफ़ाई या शुद्धि करने परिवेद-संज्ञा, पु. ( सं० ) पूर्ण ज्ञान। | वाला । वि० परिशोधित । परिवेदन--संज्ञा, पु. (सं०) पूर्णज्ञान, विच- परिशोधन- संज्ञा, पु० सं०) पूर्णरूप से शुद्ध रण-लाभ, बहस दुख, बड़े भाई से पहले या साफ़ करना, चुकता या बेबाकी करना । छोटे का ब्याह होना।
| वि० परिशुद्ध, परिशोधनीय, परिपरिवेश-संज्ञा, पु. (सं०) घेरा, वेष्टन। | शोधित। परिवेष-परिवेषण-संज्ञा, पु० (सं०) परिश्रम--संज्ञा, पु० (सं०) मेहनत, प्रायास, भोजन परोपना, परसना (ग्रा० ) वेष्टन,
श्रम, केश, उद्यम, थकावट, श्रांति । घेरा, सूर्यादि के चारों ओर का बादल का
परिश्रमी- वि० ( सं० परिश्रमिन् ) मेहनती
उद्यमी, श्रम करने वाला। मंडल, कोट, परकोटा, शहर-पनाह । वि०---
परिश्रय-संज्ञा, पु० (सं० ) रक्षा या पाश्रय परिवेषणीय, परिवेशव्य, परिवष्या का स्थान, परिषद, सभा । परिवेधन-संज्ञा, पु. (सं०) प्रावरण, पाच्छा. परिश्रांत-वि० (सं०) थका या हारा हुआ।
दन, घेरा । वि० परिवेष्टित, परिवेष्टनीय। परिशत-विक प्रसिद्ध विख्यात । परिवज्या-संज्ञा, स्त्री० (सं०) भ्रमण, तप- |
परिषत्-परिषद् - संज्ञा, स्त्री० (सं०) सभा, स्या, भिखारी सा, गुजर करना या जीवन- समाज, किसी विषय पर व्यवस्था देने वाली निर्वाह ।
विद्वत्सभा। परिव्राज-परिव्राजक--संज्ञा, पु. ( सं०)
परिषद-संज्ञा, पु० (२०) सभासद, सदस्य,
दरवारी। संन्यासी, परमहंस, यती।
परिकार - संज्ञा, पु० (सं०) सफ़ाई, शुद्धि, परिवा , परिवाड्-संज्ञा, पु० (सं०) परि
संस्कार, निमलता, स्वच्छता, भूषण, गहना वाज, संन्यासी, साधु ।
शृंगार, सजावट। परिशिष्ट-वि० (सं०) अवशेष, बानी । संज्ञा, परिष्क्रिया-संज्ञा, स्त्री० (सं०)शोधन, मार्जन, पु० (सं०) किसी कारण ग्रंथ में प्रथम न धोना, सजाना, मांजना सँवारना। दिया जा सका किन्तु अंत में दिया उपयोगी, परिष्कृत-वि० (सं०) शुद्ध या स्वच्छ किया
आवश्यक या महत्वपूर्ण बातों का अंश । हुआ, धोया-माँजा हुश्रा, सजाया या परिशीलन-संज्ञा, पु० (सं०) किसी विषय सँवारा हुआ, परिमार्जित ।
को भली भांति सोचते-विचारते ध्यान लगा परिष्यंग-संज्ञा, पु० (२०) आलिंगन, रमण | कर पढ़ना, स्पर्श करना। " ललित लवंग परिसंख्या- संज्ञा, स्त्री० (सं०) गिनती, बता परिशीलन कोमल मलय समीरे"- गणना, एक अलंकार जिसमें प्रस्तुत या गीतः। वि० परिशीलित, परिशीलनीय। अप्रस्तुत बात उसके समान अन्य बात के परिशुद्ध-वि० (सं०) परिष्कृत, परिशोधित, व्यंग्य या वाच्य से रोकने के लिये कही पवित्र, शुद्ध, साफ-सुथरा।
जाय। इसके दो भेद हैं-१-सप्रश्न २परिशुष्क-वि० (सं० ) बहुत सूखा। अप्रश्न ( १० पी०)।
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