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परिजन १०८६
परितोष परिजन-संज्ञा, पु० (सं०) परिवार, कुटुम्ब, परिणायक संज्ञा, पु० (सं०) स्वामी, पति, नातेदार, स्वजन, सेवक । " बड़े भये परि- पाँसा खेलने वाला। जन सुखदाई "-- रामा० ।
परिणायकरत्न - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) बौद्ध परिज्ञा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) ज्ञान. बुद्धि । चक्रवर्तियों के सप्तधन-कोषों में से एक । परिज्ञात-वि० (सं०) ज्ञात, समझा-बूझा। परिणाह- संज्ञा, पु० (सं०) विस्तार, विशापरिज्ञान --- संज्ञा, पु० (सं०) पूरा ज्ञान । लता, चौड़ाई आकार प्राकृति, दीर्घस्वाँस। परिणत -वि० (सं०) परिणाम प्राप्त, पक्क, परिणात-वि० (सं०) विवाहित, जिसका पका या झुका हुश्रा, रूपांतरित. बदला | विवाह हो चुका हो, पूर्ण समाप्त,। हुश्रा, पचा हुआ।
परिणीता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) पाणिगृहाता, परिणति-संज्ञा, स्त्री० (सं०) फल, रूपांतर विवाहिता, व्याही हुई स्त्री, ऊढ़ा (नायि०)। होना या बदलना, प्रौढ़ता, पुष्टि, परिपाक, परिणेता-संज्ञा, पु० (सं०) भर्ता, पति । पचा हुश्रा, अंत । “परिणतिर वधार्यः यत्नतः परिणेय-वि० पु. (सं०) व्याहने योग्य, पंडितेन"-1
वि० स्त्री० परिणेया। परिणय-संज्ञा, पु० (सं०) विवाह, व्याह ।
परितः-अ० (सं०) सर्वतः, चारों ओर, चारों परिणयन--संज्ञा, पु० (सं०) व्याहना, विवाह
ओर से। करना, विवाहना।
परितच्छ. परतच्छ* -संज्ञा, पु० दे० (सं.
प्रत्यक्ष) प्रत्यक्ष, संमुख, सामने, प्रगट, परिणाम-संज्ञा, पु० (सं०) रूपांतर प्राप्ति,
प्रतच्छ (दे०)। बदलना, रूप परिवर्तन, अवस्थांतर-प्राप्ति ।
परिताप-संज्ञा, पु० (सं०) मनस्ताप, संताप विकृति, विकार, स्थिति-भेद (योग०) विकास,
क्लेश, शोक, दुख, पश्चात्ताप पाँच ताव । वृद्धि, परिपुष्टि बीतना, फल, नतीजा, एक
" अति परिताप सीय मनमाहीं।" वि. अर्थालंकार , जिसमें उपमान उपमेय का
परितापित। कार्य ( उससे एक रूप होकर ) या कोई
परितापन-संज्ञा, पु० (हि०) संताप देना। कार्य करता है (अ० पी०)।
वि० परितापनीय । परिणामदर्शी-वि० यौ० (सं० परिणाम
परितापी-वि० ( स० परितापिन् ) व्यथित, दर्शिन् ) दूरदर्शी, सूचमदर्शी, फल को विचार
दुखित, पीड़ा देने या सताने वाला, जिसको कर काम करने वाला। वि० परिणाम
परिताप हो । वि० (सं० प्रतापिन् ) प्रतापी दर्शक । संज्ञा, यौ० परिणामदर्शन।
परतापी (दे०)। परिणामष्टि--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) किसी परितुष्ट-वि० संज्ञा, (सं० परितुष्टि) अत्यंत. कार्य के फल के जान जाने की शक्ति
संतुष्ट, प्रसन्न, श्रानन्दित, हृष्ठ । परिणामवाद -- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) | परितुष्टि-संज्ञा, स्त्री० (सं०) सम्यक संतोष, संसार की उत्पत्ति और नाश आदि का | तृप्ति, श्राह्लाद, हर्ष, प्रानन्द । नित्य परिणाम के रूप में मानना (सांख्य०) परितृप्त-संज्ञा, पु० (स०) सम्यक् तृप्त । वि० परिणामवादी।
परितृप्ति-संज्ञा, स्त्री० (सं०) तृप्ति, अधाई, परिणामी-वि० ( सं० परिणामिन् ) जो सन्तोष, हर्ष, पूर्णता, संतुष्टि। लगातार बराबर बदलता रहे। स्त्री० परिणा- | परितोष संज्ञा, पु० (सं०) तृप्ति, प्रसन्नता, मिना।
संतोष । " करु परितोष मोर संग्रामा ।" परिणय-संज्ञा, पु० (सं०) व्याह, विवाह । । रामा० । वि० परिताषित, परितोषो।
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