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अनेह
अन्नकूट “ अजहूँ जिय जानि-मानि कान्ह है। “जा कारन सुन सुत सुन्दरवर कीन्हो अनेरो"-सूर० ।
इतो अनैहो”–सूबे०। कि० वि० व्यर्थ, फ़जूल ।
अनोकहा-संज्ञा, पु० (सं० ) अपना स्थान "चरन सरोज बिसारि तिहारे निसि-दिन न छोड़ने वाला, स्थावर, वृक्ष। फिरत अनेरो”–विनः ।
" अनोकहा कंपित-पुष्प गंधी "रघु० । वि० दे० अनेरे (प्रान्ती०) (अनियरे) अनोखा-वि० दे० ( सं० अन् + ईक्ष )
जो नेरे, पास या समीप न हो, दूर। अनूठा, निराला, विलक्षण, विचित्र, नया, अनेह-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रस्नेह ) प्रेम सुन्दर, अपूर्व, अद्भुत, दुर्लभ,।। या स्नेह-रहित, विरक्ति।
स्त्री० अनोखी। वि० अनेही-स्नेह-हीन, विरक्त । (विलोम- | अनोखापन-संज्ञा, पु. (हि० अनोखा+ सनेही)।
पन-प्रत्य० ) अनूठापन, निरालापन, विचिअनै-संज्ञा, पु० दे० (सं० अनय ) अनीति, ता, नवीनता, सुन्दरता, विलक्षणता । अन्याय।
अनोना-अलोना-वि० दे० (सं० अलवण) अनैक्य-संज्ञा, पु. (सं० अन् -+ ऐक्य ) एका लवण-रहित, नमक-हीन, जो नमकीन न न होना, मत-भेद, फूट, विरोध, वैमनस्य । हो, अलोन। अनैठ -संज्ञा, पु० दे० (सं० अन् + पंण्यस्थ) दे० स्त्री. अलोनी ( सलोनी का विलोम ) बाज़ार के बंद रहने का दिन, बाज़ार की लावण्य-रहित । छुट्टी का दिन, पैंठ का उलटा। अनौचित्य-संज्ञा, पु. ( सं० अन्+ अनैस -संज्ञा पु० दे० (सं० अनिष्ट) औचित्य ) अनुचित का भाव, उचित बात बुराई, अहित, अनइस (दे०)।
का अभाव, अनुपयुक्तता । वि० दे० बुरा, ख़राब ।
अनौट -संज्ञा, पु० दे० (हि.) देखो अनैसना -अ. क्रि० (हि० अनैस ) बुरा 'अनवट' पैर के अंगूठे में पहिनने का
मानना, रूठना, अनिष्ट होना या करना ।। छल्ला, अनउट (प्रान्ती०)। अनैसा*- वि० पु० दे० ( हि० अनैस) ।
१० (हि० अनेस ) । अन्न--संज्ञा, पु. ( सं०) खाद्य पदार्थ, अप्रिय, बुरा, खराब, स्त्री० अनैसी। ।
अनाज, धान्य, दाना, गल्ला, पकाया हुआ " सुन मातु भई यह बात अनैसी".-- अनाज, भात, सूर्य, पृथ्वी, प्राण, जल। रामा०।
मु० अन्न-जल उठना-निवास छूटना, "तरुनिनकी यह प्रकृति अनैसी"-सूबे० ।
अन्न जल बदा होना-कहीं का जाना अनैसे*-वि. बहु० (हि. अनैस) बुरे- और रहना अनिवार्य हो जाना। अन्न-जल क्रि० वि० बुरे भाव से।
रूठना-किसी स्थान से बलात् जाना " अजहुँ अनुज तव चितव अनैसे" ।
पड़ना। --रामा०।
वि० (सं० अन्य ) दूसरा, विरुद्ध । अनैसो-वि० दे० (हि० अनैस ) अप्रिय, अन्नकष्ट-संज्ञा, यौ० पु० (सं० ) दुर्भिक्ष, बुरा, अनिष्ट ।
अकाल । " अहित अनैसो ऐसो कौन उपहास अरी" अन्नकूट-संज्ञा, पु० (सं० ) एक पर्व-दिवस -पद्मा० ।
जो, प्रायः दिवाली के दूसरे दिन माना अनहा*-संज्ञा, पु० (हिं० अनैस ) उत्पात, जाता है इसमें विविध प्रकार के अन्नों के मचलना।
भोजन बनते हैं। और उनका भोग भगवान
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