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बहुजात।
अनूदा
अनेरा अनूदा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) किसी पुरुष अनृतवादी-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) असत्यसे प्रेम रखने वाली अविवाहिता स्त्री, एक वादी, मिथ्यावादी। प्रकार की नायिका ( नायिका-भेद ) | अनेक-वि० (सं० अन्+एक ) एक से (विलोम-उढ़ा)।
अधिक, बहुत, बहु, भूरि, कई, अगणित, अनूदा-गामी-संज्ञा, पु० (सं० ) व्यभि
ढेर, (दे० ) अनेग। चारी, लंपट, वेश्यागामी।
संज्ञा, भा० स्त्री० अनेकता, अनेकत्व । अनूतन-वि० (सं० ) जो नूतन या नया ब० व० (७०) अनेकन । न हो, पुराना।
अनेकज संज्ञा, पु० (सं० ) द्विज, पक्षी, अनूतर*-वि० दे० ( स० अनुत्तर ) निरुत्तर, मौन, उत्तर-रहित ।
अनेकता-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) भेद, विभेद, अनूदित-वि० (सं० ) कहा हुआ, किया
विरोध, मताधिक्य आधिक्य, अधिकता, हुआ, भाषान्तरित, उल्था किया हुआ,
बहुलता। अनुवादित, तर्जुमा किया हुआ।
संज्ञा, पु० भा० अनेकत्व । अनून*-वि० दे० (सं० अन्यून ) न्यून
अनेकधा-अव्य. (सं० ) अनेक बार, जो न हो, पूर्ण, बहुत ( भाव० )
बारंबार । अनूप-संज्ञा, पु० (सं० ) जलप्राय प्रदेश,
अनेकशः-अव्य० (सं० ) अनेक प्रकार, वह स्थान जहाँ जल बहुत हो, जल-प्लावित |
बहु प्रकार, बहुत भाँति ।। या सजल प्रान्त ।
अनेकार्थ-वि० यौ० (सं० अनेक+अर्थ) वि० दे० (सं० अनुपम ) जिसकी उपमा न |
जिसके बहुत से अर्थ हों, अनेकार्थकदी जा सके, निरूपम, बेजोड़, सुन्दर, वि. अनेक अर्थवान् । अच्छा, अद्वितीय, अनूपा दे।
संज्ञा, पु. अनेकार्थ वाचक । " इनके नाम अनेक अनुपा"-रामा० । अनेग-वि० दे० (सं० अनेक ) देखो संज्ञा, स्त्री. (सं० अनुपज ) उपज या
अनेक । पैदावार का अभाव, फसल का न पैदा
अनेड़-वि० दे० (प्रान्ती०) निकम्मा, होना, न जमना।
टेढ़ा, ख़राब, बुरा। अनूपज-संज्ञा, पु० (सं०) आर्द्रक, |
“ पिय को मारग सुगम है, तेरा चलन अदरक, श्रादी।
अनेड़ "-कबीर । अनूपम-वि० (सं० ) अनुपम, निरुपम,
अनेम-संज्ञा, पु० दे० (सं० अ+नियम ) अनुपमेय, उपमा रहित, अद्वितीय, बेजोड़। ।
नियम-रहित, बेकायदा। संज्ञा, भा० स्त्री० अनुपमता-- अद्विती
अनेरा-वि० दे० ( सं० अन्त ) झूठ, व्यर्थ, यता, विचित्रता, अनुपमता। " देख्यौ एक अनूपम बाग"-- सूर।
निष्प्रयोजन, झूठा, अन्यायी, दुष्ट, निकम्मा,
टेढ़ा, उधमी। अनृत-संज्ञा, पु. ( सं० ) मिथ्या, असत्य
वि० (अ+नेरा ) जो पास न हो, दूर। मूठ, अन्यथा, विपरीत।
" छोटे और बड़ेरे मेरे पूतऊ अनेरे सब वि०-अतथ्य, झूठ, असत्य ।।
-कविता० । अनृत-वाद-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) " रेरे चपल-स्वरूप ढीठ तू बोलत बचन असत्य-वाद, झूठ कथन ।
अनेरे"-- सूर० । मा० श० को०-१३
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