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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पतिव्रत पतिव्रत-संज्ञा, पु० (सं० ) स्त्री की अपने स्वामी में अनन्य भक्ति और प्रीति, पातिव्रत्य पतिबरत (दे० ) । पतिव्रता - वि० (सं० ) सती, साध्वी, पतिभक्ता, पतिबरता । जग पतिव्रता चारि विधि हई " - रामा० । 60 पतीजन - पतीजना* ग्र० क्रि० दे० (हि० प्रतीत + ना प्रत्य० ) पतियाना, विश्वास करना । " 'तिन्हें न पतीजै री जे कृतही न माने ". पतीरी - संज्ञा, स्त्रो० (दे० ) एक प्रकार की चटाई। - सूत्रे० । २०६४ पतील | - वि० दे० ( हि० पतला ) पतला, महीन, बारीक । = पतीली - संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० पातिली = i) एक तरह की पतली बटलोई। पतुकी - संज्ञा, खो० (दे०) हाँड़ी । स्त्री० पतुली - संज्ञा, स्त्री० (दे०) एक गहना जो पहुँचे में पहना जाता है 1 पतुरिया, पातुर, पातुरी - संज्ञा, दे० (सं० पातिली ) रंडी, वेश्या ! पतुही -- संज्ञा, स्त्री० (दे०) छोटे मटर की छीमी पतोखा - संज्ञा, पु० दे० ( हिं० पत्ता ) दोना, पत्ते का बर्तन | संज्ञा, पु० (दे०) एक तरह का बगुला । स्त्री० पा० पनोखी । पतोखी-पतौखी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पतोखा ) छोटा दोना, दुनियाँ, छोटा छाता. बारीक कटी सुपाड़ी | पतोह - पतोहू | वधू) लड़के या बेटे की पत्नी, संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० पुत्र पुत्र-वधू । 46 - रामा० । होहिं राम-सिय पुत्र- पतोहू " पतौआ-पतौवा :-- संज्ञा, पु० दे० ( सं० पत्र ) पत्ता, पर्ण । पतन - संज्ञा, पु० (सं०) शहर, नगर । पत्तर – संज्ञा, पु० दे० (सं० पत्र ) किसी धातु की पतली चादर | पत्तल - संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० पत्र ) पतरी । मुहा० - एक पत्तल के खाने वाले पत्थर KHRAGA VARGLASS HRONING आपस में रोटी-बेटी का सम्बन्ध रखने वाले । किसी के पत्तल में खाना- किसी से खानेपीने का सम्बन्ध करना या रखना। जिस पत्तल में बाना उसी में छेद करनाजिससे लाभ हो उसी को हानि पहुँचाना, कृतघ्नता करना | पत्तल में रखी हुई भोजन की चीजें, एक व्यक्ति का पूर्ण भोजन । पत्ता - संज्ञा, पु० दे० (सं० पत्र ) पर्ण, पलाश, पात, पतीचा (ग्रा० ) । स्रो० पत्ती । मुहा०-- पत्ता खड़कना कुछ श्राशङ्का, खटका या संदेह होना । लो० – पत्ता खटका बंदा सटका ।" पत्ता न हिलना -हवा का न चलना, बिलकुल बन्द होना, किसी भी व्यक्ति का कुछ न करना ( होना) । कानों का एक गहना । पत्ति - संज्ञा, पु० (सं० ) पैदल सिपाही, पदाति, प्यादा, शूरवीर, बहादुर, सेना का सबसे छोटा खंड | पत्तिक-संज्ञा, पु० ( सं०) सेना का एक खण्ड, जिसमें घोड़े, हाथी, रथ, पैदल प्रत्येक दश दश हों, ऐसी सेना का नायक । पत्ती-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पत्ता + ईप्रत्य० ) छोटा पत्ता, हिस्सा, भाग, साझे का श्रंश, पट्टी, राजपूतों की एक जाति । पत्तीदार - संज्ञा, पु० (हि० पत्ती + फ़ा० दार ) हिस्सेदार, साझी | 55 पत्थ* संज्ञा, पु० दे० (सं० पथ्य ) रोगनाशक पदार्थ, स्वास्थ्यकारी पदार्थ, पथ्य | पत्थर - संज्ञा, पु० दे० ( सं० प्रस्तर ) जमी हुई प्रतिकड़ी मिट्टी पाथर, क्रि० पथराना । " मेरा यारो है पत्थर का कलेजा ' - भा० ह० । वि० पथरीली । मुहा० - पत्थर का कलेजा (दिल या हृदय ) -- जिसमें दया, कोमलता या करुणा न हो । पत्थर की छाती - पक्का या दृढ़ हृदय, पक्का स्वभाव | पत्थर की लकीर - श्रमिट, स्थायी पत्थर चटाना -घिस कर धार निकालना या तेज़ करना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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