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पगना १०५२
पचरंग पगना-अ. क्रि० दे० (सं० पाक ) किसी | जुगाली करना, पचाना, दुबारा चबाना, वस्तु का किसी वस्तु से पूर्ण मेल होना, (ग्रा० व्यंग्य) धीरे धीरे बात करना । मिलना, लीन होना, किसी वस्तु में निहित पघा-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रगट ) पगहा, होना, प्रभावित होना।
पगही, बैल आदि के बाँधने की मोटी रस्सी। पगनियाँ-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पग) जूता। पचकना-अ० कि० दे० (हि० पिचकना) पगरा -संज्ञा, पु० दे० (हि. पग+रा- किसी उभरे या उठे हुए तल का दब जाना, प्रत्य०) कदम, पग, डग, बड़ी पगड़ी, पिचकना। स०, प्रे० रूप-पचकना, पगड़ा । संज्ञा, पु० दे० (फा० पगाह) चलने | पचकवाना।
का समय, प्रभात, तड़का, सबेरा। पचकल्यान-संज्ञा, पु० दे० (सं० पंचकल्याण) पगला-वि. पु. (दे०) पागल, विक्षिप्त, वह घोड़ा जिसके चारों पाँव और माथा बैलाना, सिड़ी। स्त्री० पगली।।
सफेद हो, शेष शरीर का और रंग हो। पगलाना-अ० क्रि० (दे०) पागल होना, " तुरकी ताजी और कुमैता घोड़ा सब्जा पागल करना।
पचकल्यान"-श्राव्हा० । पगहा-संज्ञा, पु० दे० ( सं० ग्रह ) गिरवाँ, पचखा-संज्ञा, पु० दे० (सं० पंचक) पुंचक । पया । स्त्री. पगही। लो०--आगे नाथ | पचगुना-वि० दे० यौ० ( सं० पंचगुण ) न पीछे पगहा-अनाथ, असहाय । पाँच गुना। पगा-संज्ञा, पु० दे० (हि० पाग ) पाग, | पचड़ा-पचरा- संज्ञा, पु० दे० (हि. पांच पगिया । " शीश पगा न झगा तन में" =प्रपंच + ड़ा-- प्रत्य० ) झंझट, प्रपंच,
-नरो । वि० (हि. पगना ) लीन, पगा। बखेड़ा, एक गीत। हुश्रा, अनुरक्त ।
पचतोरिया-पचतोलिया - संज्ञा, पु० (दे०) पगाना-स० कि० (सं० पाक ) अनुरक्त | एक तरह का महीन बारीक कपड़ा। या मान करना, मिलाना, ऊपर से चीनी पवन-संज्ञा, पु. (१०) पाक, पकाने या श्रादि चढ़ाना। प्रे० रूप (दे०) पगवाना। पचाने की क्रिया का भाव, अग्नि, श्राग। संज्ञा, स्त्री० (दे०) पगाई, पगवाई-पगाने, पचना-अ० क्रि० द० (सं० पचन ) हज़म पगवाने की क्रिया या मज़दूरी।
होना, पर धन अपने हाथ ऐसा श्रावे कि पगार-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रकार ) घेरा, वापिस न हो सके, शरीर गलाने वाला चहार-दीवारी। संज्ञा, पु० दे० ( हि० पग+ परिश्रम, बहुत तंग या हैरान होना । " चलै गारना) पाँवों से कुचली हुई मिट्टी, कीचड़ कि जल बिनु नाव, कोटि जतन पचि पचि या गारा, पावों से पार करने योग्य नदी मरिय"-रामा० । मुहा०—बाई पचना या पानी, पायाब । वि० (ग्रा०) ढेर, समूह । ( व्यंग्य )-गर्व दूर होना । मुहा०पगाह-संज्ञा, स्त्री० (फा०) चलने का वक्त, | पचमरना-बहुत अधिक परिश्रम करना, भोर, सबेरा, तड़का।
हैरान या तंग होना, खपना । स० कि. पगियाना-पगियाना*-सक्रि० दे० (हि. । (दे०) पचाना। प्रे० रूप -- पचवान । पगाना) पागना, पगाना, अनुरक्त या पचपन-संज्ञा, पु० (दे०) पंचपंचाशत (सं०) मग्न करना।
पचास और पाँच की संख्या ५५ । पगिया -संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० पगड़ी) पचमेल-वि० दे० ( हि० पंचमेल ) पंचमेल, पाग, पगड़ी।
पाँच पदार्थों के मेल से बना पदार्थ । पगुराना-अ. क्रि० दे० (हि. पागुर ) | पचरंग-संज्ञा, पु० दे० (हि. पाँच+रंग)
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