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पखरत १०५१
पगदासी पाखरी। संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० पक्ष्म ) | के पत्ते, पुष्प-दल । “ पखुरी गड़े गुलाब पंखड़ी, फूल की पत्ती, पुष्प-दल ।
की, परि है गात खरौंट"-वि०। पखरैत---संज्ञा, पु० दे० (हि. पाखर + ऐत | पखुवा-संज्ञा, पु० दे० (सं० पक्ष ) पार्श्व,
-प्रत्य० ) लोहे की पाखर वाला, घोड़ा बग़ल, पखौवा, पखौरा (ग्रा०)। या हाथी आदि।
पखेरू-संज्ञा, पु० दे० ( सं० पक्षालु ) पक्षी, पखवाड़ा-खवारा-संज्ञा, पु० दे० (सं० | चिड़िया, पंछी। पक्ष-+ वार ) पन्द्रह दिनों का समय । “पर- | पखौश्रा-पखौवा संज्ञा, पु० दे० (सं० पक्ष)
खेउ मोहिं एक पखवारा"-रामा० । । पंख, पखना, डैना, पक्ष । 'क्रीट, मुकुट सिर पखराना- स० क्रि० दे० (हि० पखारना) छाँड़ि पखौवा, मोरन को क्यों धारयो"
धुलाना, साफ कराना। प्रे० रूप पखरवाना। | -हरि० । पखान-संज्ञा, पु० दे० (सं० पाषाण) | पखौटा--संज्ञा, पु० दे० (सं० पक्ष) पंख, पत्थर। “रज होइ जाइ पखान पँवारे" पखना, पर, पक्ष । -रामा।
| पखौरा-संज्ञा, पु० (दे०) हाथ का धड़ से पखाना- संज्ञा, पु० दे० (सं० उपाख्यान ) जोड़, बग़ल । कहावत, उपाख्यान, मसल, कहनूत, कह- पग-संज्ञा, पु. ( सं० पदक ) पाँव, पैर, डग, तूत, कथा। संज्ञा, पु० दे० (फ़ा० पाखाना) फाल, पैग (व.)। पाखाना, रही।
पगडंडी-संज्ञा, सो० दे० यौ० (हि. पग+ पखारना-स० क्रि० दे० (सं० प्रक्षालन ) डंडी ) लोगों के पैदल चलने से बनी मैदान धोना, शुद्ध या साफ करना । "विप्र सुदामा या वन में छोटी राह । के चरन, श्राप पखारत स्याम "- स्फु० ।। पगड़ी-संज्ञा, स्त्रो० दे० (सं० पटक) पगिया, पखाल-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पय = पानी
पाग (०), चीरा, साफ़ा, उष्णीय, पगरी +हि. खाल ) बैल के चमड़े की मशक,
(दे०)। पु. पगड़ा। मुहा०--किसी से धौकनी, मुख धोने का बर्तन । “त्रिय
पगड़ी अटकना--समानता या बराबरी चरित्र मदमत्त न उठि पखाल मुख धोवत" होना, मुकाबला होना । पगड़ी उछालना
दुर्दशा या बे इज्जती करना, उपहास करना । पखावज-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पक्ष + वघ ) पगड़ी उतारना-मान या प्रतिष्ठा का भंग मृदङ्ग। " बाजत खाल पखावज बीना” | करना, ठगना लूटना। किसी को पगड़ी -रामा।
बाँधना-वरासत मिलना, उत्तराधिकार पखावजी-संज्ञा, पु० दे० (हि. पखावज =ई) | प्राप्त होना, उच्च पद, प्रतिष्ठा या सन्मान
मृदङ्ग या पखावज का बजाने वाला। मिलना । किसी के साथ पगड़ी बदलना पखिया-वि० दे० (सं० पक्ष ) झाड़ालू,
--मैत्री या बंधुता जोड़ना। पैरों पर बखेड़िया।
पगड़ी रखना--प्राधीन हो विनय करना, पखी-पखीरी*--- संज्ञा, पु० दे० (सं० पक्षी)। सम्मान देना। पती, पखेरू, पंछी, (ग्रा०) पच्छी (दे०) पगतरी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि. पग चिड़िया।
| +तल ) जूता. पनही (ग्रा०) खड़ाऊँ । परखुड़ी-पखुरी--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पदम ) | पगदासी-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (हि० पग पंखड़ी, पाँखुरि, पाँखुरी (प्रा.), फूल | +दासी) जूता, पनही, खड़ाऊँ, चरनदासी।
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