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निचोषना १००५
निठौर निचोषना*-स० कि० दे० (हि. निचोड़ना) निजाम--संज्ञा, पु० (अ०) प्रबंध, बंदोबस्त, निचोड़ना।
इन्तज़ाम करने वाला, सूबेदार, हैदराबाद निचौहाँ-- वि०दे० (हि० नीचा - ौहाँ-प्रत्य०) के नबाबों की पदवी । नीचे की तरफ झुका हुश्रा, नमित । स्त्री० नि -वि० दे० (हि. निज) अपना, निचौहीं । "सौहे करि नयन निचौहैं करि | निजका । लेति है"- रसला
निजार*--वि० दे० (हि. नि+जोर फा०) निचौहें-- क्रि० वि० दे० (हि. निचौहाँ) | कमजोर, निर्बल। नीचे की ओर।
निझरना--अ० क्रि० दे० (हि. नि+झरना) निछक्का-वि० दे० (सं० निस-|-चक्र = मंडली) भली भाँति झड़ जाना, सार-रहित या एकांत, निर्जनस्थान, निराला ।
रीता या खाली हो जाना अपने को निर्दोष निछत्र-- वि० दे० (सं० निश्छत्र ) बिना छत्र, सिद्ध करना, सफाई देना। निझरि गये
छत्र हीन. राज-चिन्ह-रहित । वि० दे० (सं० सब मेह"- सूबे०। निः क्षत्र ) क्षत्रिय-रहित या हीन । निटिलाक्ष-संज्ञा, पु० (सं.) शिवजी। निनियाँ-कि० वि० दे० (हि. निछान ) | निझोल--वि० (दे०) झोल-रहित, सुडौल ।
निछान, शुद्ध, खालिस, बे मेल । निटोल--- संज्ञा, पु० दे० (हि० उप नि+टोल) निकलवि० दे० (सं० निरकल ) छल- | टोला-मुहल्ला, बस्ती, पुरा ।
रहित, निश्छल । संज्ञा, स्त्री० निकलता। निष्*ि- क्रि० वि० दे० (हि. नीठि ) नीठि निछान ----वि० दे० (हि० उप० नि+छानना) (व०) अरुचि, अनिच्छा । " बहि बहि हाथ बेमेल, शुद्ध । क्रि० वि० (दे०) बिलकुल, चक्र श्रोर उहि जात नीठि'--रना । एकदाम ।
निठल्ला--वि० दे० ( हि० उप० नि नहीं -1 निछावर- संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० न्यासावर्त, । टहल = काम काज ) बेकार, बेकाम, काममि० अ० निसार) उतारा, उतार, वाराफेरा, धंश या उद्यम-रहित, बैठाठाला। उत्सर्ग । मुहा० --किसी का किसी पर | निटल्लू-वि० दे० (हि० निठल्ला) निठल्ला, निछावर होना---किसी के लिये मर बेकार, बैठा-ठाला। जाना, वह वस्तु जो निछावर की जाय, निठाल, निठाला-संज्ञा, पु. द० (हि. इनाम, नेग ( विवाहादि में )।
नि+ टहल = कार्य ) एकान्त, खाली वक्त । निकोह-निछोहो- वि० दे० (हि. उप० । फुरसत का समय, जिस समय कोई काम
नि- छोह ) प्रेम-रहित, निर्दय, निर्मोही।। या प्रामदनी न हो। मुहा०—निठालेनिज-वि० (सं०) अपना, आपना, स्वकीय। एकांत में या फुरसत में। वि० (दे०) निजी--अपना । मुहा०-- निठुर- वि० दे० (सं० निष्ठुर ) निर्दय, निजका - ख़ास अपना । निजी---ख़ास, कर, निर्मोही । " जननी निठुर बिमरि प्रधान. मुख्य, यथार्थ, ठीक । अव्य. जनि जाई"--रामा० । दे० निश्चय, ठीक-ठीक । नुहा०—निज निठुरई, निठुराई* ---संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. करके (निजकै गुरु )- अवश्य, ज़रूर. निठुरता ) निर्दयता, क्रूरता, कठोरता। विशेष करके, मुख्यतः।
निठुरता--संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० निष्ठुरता ) निकाना-अ.क्रि० दे०(फा० नजदीक) रता, निर्दयता, कठोरता। समीप, पास, निकट श्राना या पहुँचना। निठौर--संज्ञा, पु० दे० (हि. नि-+ ठौर ) नचकाना (ग्रा०)।
। बुरा-स्थान, बुरी जगह या दशा, बुरा दाँव ।
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