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प्रकीर्णक देव
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४. यज्ञमूर्ति वृषभ (गो. बा.): यज्ञवृषभ के चार वेद रूपी चार सींग हैं। प्रातः, मध्याह्न और संध्यारूपी तीन पैर हैं। ब्रह्मोदन प्रवज्य के दो मस्तक हैं। मंत्र, कल्प और ब्राह्मण आदि उनका शरीर है। गायत्रीआदि सात छंद रूपी सात हाथ हैं। यज्ञवृषभ विश्व में हुंकार करता है। सभी प्राणियों का वह आत्मा माना जाता है।
५. यज्ञ पुरुष : दो पक्ष में ज्वाला सहित कुंड, मस्तक पर ज्वाला, तीन नेत्र, दो मुख, कूर्च दाढीवाला, चार वेदरूप, चारशीं प्रात, मध्याह्न और संध्या रूपी तीन पाउ (पाद), चार भुजा, सखा, चक्र, शंख, धृतपात्र। वामपक्षे स्वधादेवी, दक्षिणे स्वाहादेवी का छोटा स्वरूप। पाउ पास होता है।
६. अश्विनी कुमारः विष्णु धर्मोत्तर' के अनुसार ये पद्मपत्र पर बैठे हुए, सुवर्ण वर्ण के, दो भुजावाले होते हैं । वे सर्व प्राभूषण .धारी हैं। देवीदेवों के वैद्य माने जाते हैं। दायें हाथ में रत्नपात्र में औषधी और बायें हाथ में पुस्तक होती है। चंद्र-जैसे इनके श्वेत वस्त्र होते हैं। अश्विनीकुमार यौवना स्वरूप यान है।
७. द्वादश साध्यगण प्रतिमा: स्कंद पुराण के अनुसार ये सभी साध्वगण पद्मासन में बैठे होते हैं। कमल और माला धारण करने वाले ये धर्मपुत्र महात्मा के बारह पूजनिक माने गये हैं।
प
SEN
बुद्ध मूर्ति
प्रादित्य सूर्य
इनके अलावा भी अन्य कई प्रतिमायें हैं । जैसे धर्ममूर्ति; उसमें ज्ञान, वैराग्य ऐश्वर्य, पृथ्वी और आकाश के स्वरूप हैं। अष्ट वसुओं की मूर्तियां इस प्रकार हैं :
अष्ट वसु १ घर
३ सोम
५ अनिल २ धम
४ आप
६ नल उन्हें प्रभास के पुत्र विश्वकर्मा कहलाते है। विश्वकर्मा भृगऋषि का भानजा होता है।
७ प्रभुष ८ प्रभास
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