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अङ्ग : द्वाविंशतिम्
प्रकीर्णक देव
गणेश विनायक स्वरूप
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जया
गान
ऋद्धि
विनायक
सिद्धि
विजया
पंचायतन में और सर्व देवों में गणेश का स्थान बड़ा महत्त्वपूर्ण है। वे सर्व विघ्नों के नाशकर्ता माने जाते हैं। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य में उनकी प्रथम पूजा होती है। ग्रंथ रचना में भी कवि सर्व प्रथम उनको स्तुति करके ग्रंथ का प्रारंभ करते हैं। मकान, राजमहल या मंदिर आदि स्थापत्य में भी प्रारंभ में गणेश का पूजन किया जाता है। द्वार के उत्तरंग में भी गणेश प्रतिमा की स्थापना की जाती है। इस तरह 'श्रीगणेशाय नमः' से हरेक कार्य का प्रारंभ होता है।
ऋग्वेद में भी गणपति शब्द पाता है। "गणानात्वा गणपति हवा महे" इस प्रसिद्ध ऋचा में गणपति का स्मरण किया गया है। ईसापूर्व छठवीं शताब्दी के 'बोधायन धर्मसूत्र में 'गणेश तर्पण' दिया है। उसमें गणेश के अनेक नाम दिये हैं जैसे:
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