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भारतीय शिल्पसंहिता
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बलराम-रोहिणी
राधाकृष्ण
२. वेणुगोपाल
यह भी श्री कृष्ण का ही बाललीला का स्वरूप है। पैरों में प्रांटी लगाकर त्रिभंग स्वरूप में बंशी बजाती कृष्ण की ऐसी मूर्ति गोपाल कृष्ण के नाम से पहचानी जाती है।
जब कृष्ण राधा के साथ होते हैं तब वे राधाकृष्ण के नाम से पुकारे जाते हैं। वैखानस आगम और विष्णु धर्मोत्तर पुराण में विविध भेद दिये गये हैं। ३. गोवर्धनधारी
श्री कृष्ण की बाललीला का समय चमत्कारिक प्रसंगों का है। इंद्र पूजा के नष्ट करनेके लिए और अतिवृष्टि से गोकुल को बचानेके, लिए कृष्ण ने अपनी अंतिम अंगुली पर गोवर्धन पर्वत धारण किया था,ऐसी कथा है। दोहाथ धारी कृष्ण विभंगत्र स्वरूप में, पैर में पाटी डाल कर, बाये हाथ से पर्वत धारण किये खडे हैं। दाये हाथ में लकड़ी है। बाजू में गायें और गोप बाल है। उन्होंने भी लकड़ियों से पर्वत को टिकाया हुआ है। चार हाथों के गोवर्धनधारी कृष्ण का स्वरूप इस प्रकार है। ऊपरी एक हाथ से गोवर्धन पर्वत धारण कर रखा है। अन्य हाथो में मुरली, शंख और चक्र हैं। इस प्रकार की मूर्तियां भी देखी जाती हैं। किरीट मुकुट और अन्य अलंकार युक्त कई स्वरूप भी गोवर्धनधारी के हैं। साथ में गौ है।
४. कालियामर्दन
श्री कृष्ण की बाललीला का ही यह एक स्वरूप हैं। यमुना में कालिया नामक नाग लोगों के लिए बड़ा घातक था। इसलिये कृष्ण बाललीला के बहाने यमुना में जाकर नाग को बाहर ले आये और उसके माथे पर नृत्य करते हुए बंशी बजाने लगे। कई जगह इस स्वरूप में कृष्ण के चार हाथ दिखाये हैं। एक हाथ से कालिया नाग की पूंछ पकडकर शंख, चक्र और वेणु के साथ वे खडे हैं । उनके साथ उनके चारों ओर कालिया नाग की आठ पत्नियां कृष्ण की स्तुति करती हैं। ऐसे शिल्प दीवाल पर या छत में उकेरे होते बहुत देखने में आते है।
विष्णु की पाठ भुजा, चार भुजा और दो भुजा की मूर्तियां नगर के द्वार, देवमंदिर या घर में रखने के लिए मत्स्य पुराण में कहा गया है।
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