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देवांगना स्वरूप
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देवांगनाओं के कई नामः
भागवत के छठे स्कंध में नर-नारायण के तपोभंग के लिये अप्सराओं के स्वरूप का वर्णन है।
प्राचीन संस्कृत काव्यों में 'पुत्रलिका' के रूप में इनका वर्णन किया गया है। वह इस तरह है : १. 'हर्ष चरित्र' में : कनक पुत्रिका-पत्नभंग पुत्रिका २. 'कादंबरी' में : कर्पूर पुत्रिका ३. 'तिलक मंजरी' ग्रंथ में : चंदन पेक, प्रति यातना, यंत्रपुत्रिका, मणिपुत्रिका, चिनपुत्रिका, चित्रपट पुत्रिका, दुहितका ४. 'उदय सुंदरी' कथा में : लेख्य पुत्रिका, क्रीड़ा पुत्रिका ५. 'मालती माधव' में : दंतपांचालिका, पांचालिका
इस तरह संस्कृत साहित्य में देवांगना या पुतलियों के लिये पुत्रिका शब्द रूढ़ हो गया।
रागरागिनियों के चित्रात्मक रूप भारतीय कलाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के लक्षणों के साथ दिये गये हैं। शालभंजिका : नृत्यमुद्रा मे ऊपर आम्रवृक्ष को डाली को सामान्यतः शालभंजिका कहा गया है।
बुद्ध की माता मायादेवी के ऊपर पाम्रशाखा दिखाई गई है, उसे शालभंजिका रूप कहा है।
'हर्षचरित्र' में मिट्टी में से बनाई हुई स्त्रीमूर्ति को 'अंजलिका' कहा गया है। और 'कादंबरी' में मिट्टी के खिलौने को मृदंग (मृत + अंग) कहा है। उसका अर्थ 'मृत्पुत्रिका' दिया गया है।
संस्कृत साहित्य में पुत्रिका या पुतली के नाम से जो देवकन्या वर्णित है, उसके नाम और लक्षण शिल्पाकृतियों से ठीक मिलतेजलते है।
राजा विक्रम की लोककथाओं में वर्णित ३२ पुतलियों की कहानियों से ये मूर्तियाँ बिलकुल भिन्न हैं। ... उड़ीसा में १६ देवांगनाओं को १६ 'अलस्या' कहा है। उनके स्वरूप और लक्षण कलिंग के शिल्पग्रंथ 'शिल्प प्रकाश' में दिये गये है। वे इस प्रकार हैं:
भावानुसारती नाम्ना कन्याबंधः स उच्यते अलसा, तोरणा, मुग्धा, मानिनी डालमालिका॥ पद्मगंधा दर्पणा च विन्यासा ध्यान कर्षिता केतकी भरणा दिव्या मातृभूतिः तथवच चामरा गुंठना मुख्या नर्तकी शुकसारिका नपुरपादिका रम्या मर्दला बातिशोभना ।। एता षोडश मुख्यास्थुरलसा बंध-भेदता॥
शिल्प प्रकाश :प्रथम प्रकाश (१) १. अलस्या-पालसी:
लीलावती जैसा स्वरूप। २. तोरणाः
सुगंधा से उलटे हाथ दायीं ओर मुख का मरोड़, दायां पैर सीधा और बायां प्राटी लगाया हुना। ३. मुग्धा :
दायीं ओर मुख करके, दायें हाथ से मुख को स्पर्श करके, बायां हाथ नीचे मोड़कर किया हुआ । ४. मानिनी:
विधिचिता जैसी ही दर्पणयुक्त, फिर भी दायां हाथ विधिचिता से ऊंचा रहना चाहिए। ५. जलमालिकाः
दायीं ओर मुख करके, बायां हाथ ऊंचा, दायां हाथ स्कंध तक मोड़ा हुआ। ६. पद्मगंधा:
बायीं ओर मरोड़ के, केश गुंफन करते समय, दायाँ हाथ नीचे और बायाँ हाथ ऊपर मोड़कर, हाथ कमलयुक्त । ७. दर्पणा: ___ विधिचिता जैसा ही स्वरूप । लेकिन उसके बायें हाथ में दर्पण है और दाहिना हाथ माथे पर है। बायां पैर सीधा और दाहिना
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