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दृष्टिमताकार्या नृत्य भान नर्तको ज्ञायते सर्व लोकेस्मिन स्थूलवेहा (च) महीतले एते पाविताना दिव्यस्थाने चतुर्मु दिग्पाला यक्ष गंधर्व भास्करादि ग्रहस्तथा ॥
1897 विणावादिनी.
VINAVADINI
श्लोक नं०-३३ :
सर्वलोक में जानी-पहचानी देवांगनाएँ पृथ्वी पर स्कूल देह में नृत्य मुद्राओं में देखने को मिलती है इत्यनाथ की दृष्टि नीची रखनी चाहिए। प्रासाद के दिव्य स्थान में, चतुर्मुख प्रासाद के मंडोवर के जंघामंडप में, चौकी और गुम्बर - वितान आदि में दिग्पाल, लोकपाल, यक्ष, गांधर्व और सूर्यादि नौ ग्रह उत्कीर्ण करने चाहिए। जबकि मुनि, तापस, व्याल आदि के स्वरूप पानीतार ( जलान्तर ) में उरेहने चाहिए।
बन्सीवादिनी बन्सीपावधारीनी मृदंगवादिनी BANSIVADINI BANSI PATRADHARINI MRUDANGAVADINI
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