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उत्तरी क्षत्रपों की लिपि प्रथमार्ध में प्रचलित थे ।166 खारवेल के उत्तराधिकारियों के अभिलेखों में भी कलिंग-लिपि दिखाई पड़ती है ।167 यदि बर्गेज ने पितलखोरा168 की गुफाओं की जो तिथि निर्धारित की है वह सही है तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि नानाघाट के अभिलेखों की लिपि ईसा की पहली शती तक इस्तेमाल में आती रही।
19. उत्तरी ब्राह्मी की पुरोगामी लिपियां
अ. उत्तरी क्षत्रपों की लिपि : फलक III मथुरा के जैन अभिलेखों में (फलक II, स्त. XX) शुंग-शैली का आखिरी रूप मिलता है। इसकी अगली कड़ी उत्तरी क्षत्रपों की लिपि है। यह महाक्षत्रप राजुवुल या रंजुबल और उसके बेटे शोडास या सुडास के सिक्कों पर और उनके अभिलेखों में मिलती है। रंजुबुल और शोडास का शासन ई. पू. या ईसा की पहली शती (?) है। ये भी मथुरा के ही शासक थे ।169 मथुरा के कुछ पुराने दानलेखों और कतिपय भारतीय राजाओं के सिक्कों पर मिलने वाले लेखों में भी इसी शैली के आद्य अक्षर मिलते हैं ।170 __इस शैली (फल. III, स्त. I, II) की विशेषताएं हैं : ल (33, I) को छोड़कर अन्य सभी अक्षरों में ऊपरी खड़ी लकीरों का समानीकरण; शोशे का निरंतर इस्तेमाल, कभी-कभी शोशे की जगह कील या पच्चर जैसा सिर बनाना जैसे भ (29, I) में; घ (10, I), ज (13, I, II), प (26, I, II), फ (27, I), म (30, I, II), ल (33, I), ष (36, I) और ह (38, I, II) के कोणीय रूपों का ही इस्तेमाल करना। दूसरी नवीनताएं मुख्यतया घसीट लेखन के कारण हैं। च (11, I) का विलक्षण रूप; ड ( 18, I) का तिरछा कोणीय रूप; दे (23, I) ; भ (29, I, II) का चौड़ा रूप; र (32, I, II) जिसके नीचे भंग आ गया है--ऐसा कभीकभी बाद के उत्तरी अभिलेखों में पुनः मिलता है; आ की मात्रा (हा, 38, I
166. मिला. ऊपर 16 (टिप्पणी 159) 167. छठी ओरियंटल कांग्रेस III, 2, 179, उदयगिरि अभिलेख सं. 3, 4 168. बुद्धिस्ट केव टेम्पुल्स, 246 169. देखिए ऊपर 10
170. मिला. क., आ. स. रि. III, फल. 13, सं. 1; ए. ई. I, 392, सं. 17; क., क्वा. ऐ. ई. फल. 3, सं. 14; फल. 6; फल. 8, सं. 2 की प्रतिकृतियों से।
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