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मौर्य-लिपि
विभेदों के इस्तेमाल का लोप या रूप परिवर्तन हो गया होगा। इसमें कोई शक नहीं कि अशोक के द्वारा नियुक्त अधिकांश राज्यपाल मागध ही रहे होंगे, क्योंकि मगध ही मौर्यों का गढ़ था। इनका एक-से-दूसरे प्रांतों में स्थानांतरण भी होता था। भारतीय रियासतों की सिविल सेवा से परिचित लोग यह जानते हैं कि बड़े अधिकारी जब किसी नये पद का भार लेते हैं तो वे अपने पुराने कर्मचारियों को, कम-से-कम उनमें से कुछ को तो अवश्य ही अपने साथ ले जाते हैं। एशिया के देशों की यह प्राचीन परंपरा देशी रियासतों में अभी तक सुरक्षित है । इस प्रकार, निश्चय ही अशोक के द्वारा नियुक्त राज्यपाल भी अवश्य ही अपने साथ अपने पुराने कर्मचारियों को ले जाते रहे होंगे। शिद्दापुर के आदेशलेखों के लेखक पड का उदाहरण इस अनुमान की पुष्टि करता है। वह खरोष्ठी जानता था। इससे प्रकट होता है कि मैसूर में वह उत्तर भारत से गया होगा।
ये बातें स्थानीय विभेदों के पूर्ण विकास के अनुकूल नहीं। फिर भी अशोक के आदेशलेखों से कम-से-कम दो, शायद तीन विभेदों का पता चलता है। एक उत्तरी ब्राह्मी है और दूसरी दक्षिणी । बाद में भी इसी आधार पर लिपि के दो विभेद मिलते हैं । बिन्ध्य या हिंदुओं के अनुसार नर्मदा इनके बीच विभाजनरेखा का कार्य करती है। दक्षिणी ब्राह्मी गिरनार और शिद्दापुर के आदेशलेखों में सबसे अधिक उभर कर आई है, धौली और जौगड़ के आदेशलेखों में यह कम स्पष्ट है। इनमें अ, आ, ख, ज, म, र, स, इ की मात्रा और र के संयुक्ताक्षरों में अंतर है (दे. नीचे इ, ई, के अंतर्गत)। ऐसे कुछ उत्तरी और दक्षिणी अभिलेख लीजिए जिनमें निकट का संबंध हो और इनके अक्षरों की तुलना कीजिए। इससे इस अनुमान की पुष्टि होती है कि फर्क आकस्मिक नहीं है । यदि शिद्दापुर और गिरनार के अभिलेखों के सभी अक्षर सदा आपस में नहीं मिलते तो इसका कारण यह है कि शिद्दापुर के अभिलेख का लिपिकार पड औदीच्य था या वह उत्तर के किसी दफ्तर में रह चुका था।
उत्तरी ब्राह्मी में भी लेखन एक रूप सदा नहीं मिलता । प्रयाग, मथिया, निग्लीव, पडेरिया, रधिया, और रामपूरवा के स्तंभ-लेखों का एक वर्ग है, जिनकी लेखन-प्रक्रिया में परस्पर घना संबंध है । इनमें यदा-कदा ही कुछ छोटेमोटे अंतर दिखायी पड़ते हैं । बैराट सं. 1, सहसराम, बराबर, और साँची के आदेश-लेखों में भी अधिक अंतर नहीं है। धौली के पृथक आदेशलेख (इनमें आदेशलेख VII का. लिखने वाला वह व्यक्ति नहीं है जिसने अन्य आदेशलेख लिखे हैं), दिल्ली-मेरठ आदेश-लेख, और प्रयाग के रानी के आदेशलेख इनसे थोड़े अलग दीखते हैं, क्योंकि-इनमें द का कोणीय रूप मिलता है।
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