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भारतीय पुरालिपि-शास्त्र 1. दायें से बायें को लिखी जानेवाली एरण के सिक्के की ब्राह्मी (फलक II, स्त० I)। की संभावितः तिथि ई. पू. चौथी शती है।
स्त. XVII : इ. ऐ. XX, 361 तथा आगे की प्रतिकृतियों से अक्षर
काटकर। स्त. XVIII : इ. ऐ. XIV, 139 की प्रतिकृतियों के अनुरेखण से;
6 भरहुत सं. 98 की प्रतिकृति से त्सा. डे. मी. गे. XL, 58 से और ___41 सांची स्तूप I, सं. 199 की प्रतिकृति से ।। स्त. XIX : ए. ई. II, 240 तथा आगे की प्रतिकृति के अक्षरों को लेकर। स्त. XXI, XXII : खारवेल के हाथीगुंफा अभिलेख की कनिंघम द्वारा
तैयार किये येग फोटोग्राफ के अनुसार बनाया गया है। स्त. XXIII-XXIV : ब. आ. स. रि. वे. इ. V, फल. 51, सं. 1, 2 की
प्रतिकृतियों के अक्षरों को लेकर ।
फलक III. स्त. I-II : ए. ई. II, 199, सं. 2 और 5 की प्रतिकृतियों से और ओरा
कूप अभिलेख के कनिंघम के फोटोग्राफ से अक्षर काटकर । मिला. क.,
आ. स. रि. XX, फल. 5 से 4. स्त. III-V : कुशानों के तिथिक अभिलेखों के अक्षर काटकर। ये अभि
लेख ए. इ. I, 371 तथा आगे और II, 195 तथा आगे, पर
प्रकाशित हैं। स्त. VI : ब., आ. स. रि. वे. इं., II, 128 फल. 14 की प्रतिकृति के
सहारे। स्त. VII- XVI: ब., आ. स. रि. वे. इ. IV, फल. 51, सं. 19;
फल. 52, सं. 5, 9 10, 18, 19; फल. 53, सं. 13, 14; फल. 55 सं. 22, फल. 48, सं. 3 की प्रतिकृतियों से अक्षर काटकर और
स्त. XV का अनुरेखण फल. 45, सं. 5, 6, 11 से किया गया है । स्त. XVII, XVIII : ब., आ. स. रि. वे. इ., फल. 62, 63 की प्रतिकृ
तियों के अक्षर काटकर । स्त.XIX, XX: ए. इ. I, 1 तथा आगे की प्रतिकृतियों से अक्षर काटकर। काटे गये सभी अक्षरों की पृष्ठभूमि और अस्पष्ट लकीरें ठीक कर दी गई हैं।
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