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III. प्राचीन ब्राह्मी और द्राविड़ी [ई० पू० 350 से लगभग 350 ई. तक]
13. इसके पढ़ने की कहानी लैसेन पहले विद्वान थे, जिन्होंने सन् 1836 ई. में इंडो-ग्रीक राजा अगाथोक्लिस के सिक्कों का लेख पढ़ा जो पुरानी ब्राह्मी के अक्षरों में था।120 किन्तु 1837-38 में पूरी वर्णमाला को ही निश्चित करने का श्रेय जेम्स प्रिंसेप को है। 121 उ कार और ओ कार को छोड़कर उनकी तालिका एकदम सही है। प्रिंसेप के बाद ब्राह्मी के 6 लुप्त चिह्न भी मिल गये हैं। इनमें ई, ऊ,श, और ळ इस पुस्तक के फलक II पर दिये गये हैं। छठां चिह्न ऊ है जिसे गया में ग्रियर्सन ने खोजा था। यह मेरी पुस्तक इंडियन स्टडीज II, 2, पृ. 31, 76 और आगे 16, इ पर मिलेगा। अशोक के संगतराशों ने गया में जो वर्णमाला खोदी है उससे ई. पू. तृतीय शती में औ के अस्तित्व का विश्वास होता है । 123 ऊ और श की पहचान सबसे पहले कनिंघम ने की थी । 124 ष के एक रूप की ओर सबसे पहले सेनार ने ध्यान आकर्षित किया था 125 और दूसरे रूप की ओर हार्नले ने ।126 ळ को मैंने सांची के दान-अभिलेखों में पाया था ।127 ई के लिए नीचे 16, इ, 4 से तुलना कीजिए।
14. प्राचीन अभिलेखों की सामान्य विशेषताएं ब्राह्मी और खरोष्ठी के प्रथम 600 वर्षों के रूपों का ज्ञान हमें पत्थरों, ताम्रपत्रों, सिक्कों, मुहरों, और अंगूठियों128 पर खुदे लेखों से ही होता है। इसमें
120. क., आ. स. रि. I, XII
121. क. आ. स. रि. I, VIII-XI; ज. ए. सो. बं. VI, 460 तथा आगे ।
122. ज. ए. सो. बं., VI, 223; प्रि., इ. ऐ. II, 40 फल. 39 123. बु., इं. स्ट. III, 2, 31. 124. क., इं. अ. (का. ई. ई. I) फल. 27. 125. से., इं. पि. I, 36. 126. ज. ए. सो. बं. LVI, 74.
___127. ए. इं., II, 368. 128. ज. बा. बां. रा. ए. सो. 10, XXIII.
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