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II. खरोष्ठी लिपि 6. उसके पढ़ने का इतिहास
दायें से बायें की ओर लिखी जाने वाली खरोष्टी लिपि को पढ़ने का एकमात्र श्रेय यूरोपीय विद्वानों को है। इनमें मैसन, जेम्स प्रिंसप, लैसेन, ई. नोरिस और अले० कनिंघम का उल्लेख विशेष रूप में करना होगा। 6 इंडोग्रीक और शक राजाओं के सिक्कों पर यूनानी और प्राकृत में अभिलेख मिलते हैं। इन सिक्कों से ही सर्वप्रथम इस बात का सुराग हाथ लगा कि इन अक्षरों का क्या मूल्य है । इन सिक्कों पर आये राजाओं के नामों और उनकी उपाधियों की पहचान से जो नतीजे निकले, अशोक के आदेश-लेखों के शाहबाजगढ़ी की वाचना और ई. सी. बेली के कांगड़ा के ब्राह्मी और खरोष्ठी अभिलेखों की खोज से उनकी आंशिक पुष्टि ही नहीं हुई, अपितु कुछ नये तथ्य भी हाथ लगे। अशोक के आदेश-लेखों के अक्षर ठीक-ठीक पढ़े जा सकते हैं । कुछ संयुक्ताक्षर ही इसके अपवाद हैं (दे० आगे 11, इ. 3. 4)। इसी प्रकार शकों के अभिलेखों के पढ़ने में भी कोई कठिनाई नहीं है । खोतान से धम्मपद की जो हस्तलिखित प्रति मिली है, सामान्यतया उसे पढ़ना भी कठिन नहीं है। किन्तु पह्लव गुदुफर और कुषान राजा कनिष्क और हुविष्क के अभिलेखों के बहुत-से भागों को पढ़ना और उनका सही अर्थ लगाना अब भी मुश्किल है।
7. खरोष्ठी का उपयोग और इसकी विशेषताएं खरोष्ठी के जिस रूप का आज हमें पता है वह अल्पायु, मुख्य रूप से पुरालेखों में प्रयुक्त उत्तरी-पश्चिमी भारत की लिपि है। खरोष्टी के जितने भी अभिलेख अभी तक मिले हैं उनमें अधिकांश 69° से 73°.30' पूरब, देशांतर और 330
95. नाम के संबंध में यहीं पृष्ठ 4 तथा बु., इं. स्ट. III, 2, 113 तथा आगे के पृष्ठ देखिए।
96. प्रिं., इं. ऐ. i, 178-185; ii, 128-143; वि., ए. ऐ. 242 तथा आगे; ज. ए. सो. बं. xxiii 714; क., आ. स. रि. I, viii; सेंटेनरी रिव्यू. ii, 69-81; क., क्वा. ई.सी., 3 तथा आगे; सेनार, ई. पि. i, 22 तथा आगे; त्सा. डे. मी. गे. xliii, 129 तथा आगे ।
97. अगला पैराग्राफ देखिए ।
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