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ब्राह्मी की उत्पत्ति
१९ पंजाब की विजय के उपरांत अरमक अक्षरों के परवर्ती रूप में विकसित हुई। पंजाब पर दारा की विजय ई० पू० लगभग 500 में हुई थी। अब ए. वेवर, ई० थामस, और ए० कनिंघम के इस अनुमान पर विश्वास न करना कठिन हो रहा है कि खरोष्ठी के निर्माण में भी वही सिद्धांत अपनाये गये हैं जो ब्राह्मी के विकास में अपनाये गये थे ।70 ब्राह्मी उस काल तक काफी विकसित हो चुकी थी। हमारी आज की जानकारी के अनुसार ब्राह्मी के अतिरिक्त खरोष्ठी ही एकमात्र दूसरी लिपि थी जिसका उल्लेख बौद्ध कर सकते थे। किन्तु गांधार में भी यह एक गौण लिपि थी, और इसका विकास ई० पू० पांचवीं शताब्दी में हुआ। इसलिए ऊपर प्रकट की गई संभावना असंभव मालूम पड़ती है । सिंहलीआगमों के कर्ता ब्राह्मी से ही परिचित रहे होंगे।
4-ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति ब्राह्मी की उत्पत्ति की व्याख्या करने के लिए कई प्रस्थापनाएं की गयी हैं । ये आपस में काफी भिन्न हैं । इनमें पाँच ऐसी भी हैं जिनमें पूरे निदर्शन भी दिये गये हैं। (1) ए. कनिंघम के मत से ब्राह्मी यहीं के भारतीय बीजाक्षरों से निकली है ।3 (2) ए. वेबर के मतानुसार ब्राह्मी लिपि प्राचीन फोनेशियन अक्षरों से निकली हैं 14 (3) डबल्यू डीके इसे असीरियन कीलाक्षरों से विकसित दक्षिणी सेमेटिक लिपि से निकली मानते हैं। दक्षिणी सेमेटिक लिपि से ही सैबियन या हिम्याराइटिक लिपि भी उत्पन्न हुई।5 (4) आई० टेलर इसे एक दक्षिणी अरबी लिपि से निकली बतलाते हैं जो अब लुप्त हो चुकी है। उनके मत से सैबियन लिपि इसीका परवर्ती रूप थी ।6 (5) जे० हेलेवी इसे ई० पू० चौथी शताब्दी के अन्त के अरामैक, खरोष्ठी और यूनानी लिपि के एक मिश्र रूप से उत्पन्न मानते हैं 177
69. दे० आगे 8
70. आगे दे० 9, आ 4 71. बु., इं. स्ट. III, 2, 53-82 72. आर. एन. कस्ट, लिंग्वि. ऐंड ओरि. एसेज, द्वितीय माला 27-52 73. कु. ई. अ. I, 52 तथा आगे 74. त्सा डे. मी. गे. 10, 389 तथा आगे ; इंडि. स्कि जेन, 125 तथा आगे 75. वही, 31, 598 तथा आगे
76. दि अल्फाबेट, 2, 314 तथा आगे; कतिपय परिवर्तनो के साथ यही बात एफ. मूलर ने मोलांजिस हार्लेज में पृ. 212 तथा आगे कही है
77. ज. ए. 1885, 268 तथा आगे; रिव्यूसेम 1895, 223 तथा आगे
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