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लेखन-कला की प्राचीनता
कि उसके समय में भारत में दूरी का ज्ञान कराने और पड़ावों की सूचना देने के लिए सड़कों पर मीलों के पत्थर लगे हुए थे। उसके एक अन्य बहुचचित अंशय में कहा गया है कि भारत में वादों का निपटारा अलिखित कानूनों से होता है। इसका स्पष्टीकरण करते हुए वह आगे कहता है कि भारतीय grammata नहीं जानते । वे सभी फैसले a bomnemes करते हैं। अब यह बात मानी जाती है कि मेगास्थनीज का यह कथन उसके भ्रम के कारण है। उसे किसी ने स्मृति की सूचना दी होगी जिसे उसने mneme=memory समझ लिया। इस प्रकार उसने भारतीय स्मृतियों का गलत अर्थ लगाया। भारत में स्मृतियाँ भी लिखित होती थी । भारतीयों के मतानुसार इनका मर्म कोई धर्भवेत्ता ही अपने • मुख से बतला सकता है।
3. पुरालिपिक प्रमाण ___ साहित्य में ई० पू० पाँचवीं तथा संभवतः छठी शताब्दी में भारत में लेखन कला की पर्याप्त व्याप्ति के प्रमाण मिलते हैं। अत्यन्त प्राचीन अभिलेखों की पुरालिपिक परीक्षा से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है। इस संबंध में सर्वप्रथम अशोक के आदेश-लेखों पर विचार करना होगा। इनके अक्षरों के परीक्षण से सिद्ध होता है कि भारत में ई० पू० तीसरी शताब्दी में लेखन-कला कोई नई ईजाद न थी। आदेश-लेखों की लिपि में एकरूपता नहीं है। उ, झ, ङ, ञ, ठ और न को छोड़कर ऐसा कोई भी अक्षर नहीं है जिसके अनेक रूप न मिलते हों । इस भिन्नरूपता का कारण कुछ-कुछ तो स्थानीयता है और कुछ घसीटकर लिखने की प्रवृत्ति भी। एक ही अक्षर के कभी-कभी तो नौ-दस भेद तक मिलते हैं। फलक II, 1, 2 स्तं० II-XII में अ और आ के कम-से-कम दस रूप मिलेंगे। इनमें आठ प्रमुख एक साथ नीचे दिये जा रहे हैं :
AHHYAHA इसमें पहले और अंतिम रूप में शायद ही कोई मेल हो। किंतु पंक्ति में जो क्रम दिया गया हैं उससे इनका आपसी संबंध और विकास स्पष्ट होता
52. फेंग. 27; सी. मूलर वही, 421; 1 वानबेक, मेगस्थनीज, पृ. 50, नोट. 48; मै., मू. हि. ए. सं. लि. 515; ब., ए. सा. इं. पै. I; ला., इं. आ. II, 2, 724, बबर, इंडि, स्किजेन, 131 तथा आगे।
53. बु, इं. स्ट. III, 2, 35-35
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