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भारतीय पुरालिपि-शास्त्र लेखन-संबंधी जो उल्लेख हैं वे काफी प्राचीन हैं। दक्षिणी बौद्ध आगमों33 की भाँति ये भी पुराने शब्दों, जैसे; लिख, लेख, लेखक, और लेखन का व्यवहार करते हैं, न कि लिपि का जो संभवतः विदेशी शब्द है ।
महाकाव्यों में लेखन के सम्बन्ध में आये अधिकांश महत्त्वपूर्ण अंशों का संकलन पीटर्सवर्ग डिक्शनरी में उपर्युक्त शब्दों के अंतर्गत तथा जे० डालमन द्वारा उनके डैस महाभारत, पृ. 185 तथा आगे में हो गया है। मनु में लेखन संबंधी उल्लेखों के लिए सैक्रेड बुक्स आफ दि ईस्ट, खंड 25 की अनुक्रमणिका में Documents शब्द द्रष्टव्य है । बाद की स्मृतियों में आये कानूनी प्रलेखों के लिए इस विश्वकोश का भाग 2, खंड 8, रेश ऐंड सिट्टे, 35 देखिये। पुराणों में हस्तलिखित पुस्तकों के बारे में आये अवतरणों का संकलन हेमाद्रि के दानखंड, अध्याय 71 पृ० 544 तथा आगे (बिब्लि• इंडि०) में हैं। कामसूत्र, 1, 3 (पृ. 33, दुर्गाप्रसाद) में पुस्तकवाचन की गणना 64 कलाओं में की गई है।
आ बौद्ध-साहित्य ब्राह्मण-ग्रंथों से अधिक महत्त्वपूर्ण सिंहली त्रिपिटक की साक्षी है। इसमें अनेक स्थल ऐसे हैं जिनसे यह सिद्ध होता है कि जिस काल में बौद्ध आगम की रचना हुई उस समय लोग लेखनकला से परिचित ही नहीं थे, बल्कि जनता में इसका पर्याप्त प्रचार भी था। भिक्खुपाचित्त्य 2, 2 और भिक्खुनी पाचित्य 49,2 में लेखा (लेखन) और लेखक का उल्लेख है। पहले में लेखन-ज्ञान की प्रशंसा में कहा गया है कि इसका सर्वत्र आदर होता है। जातकों में निजी35 और शासकीय पत्रों की चर्चा है । इनमें राज-घोषणाओं का भी उल्लेख है। महावग्ग 1, 43 में एक ऐसा ही दृष्टांत मिलता है। जातकों से यह भी ज्ञात होता है कि पारिवारिक मामलों या नीति और राजनीति के सूत्र सोने के पत्रों पर खोद दिये जाते थे ।38 दो बार इणपण्ण" (ऋण-बांड) और
33. देखि. नीचे आ के अंतर्गत ।
34. बु, इं. स्ट. III, 2, 7-16%;; ओल्डेनवर्ग, सै. बु. ई. 13, XXXII तथा आगे; डी' आल्विस इन्ट्रोडक्शन, टु काच्चायन्स ग्रामर, XXVI तथा आगे CXV तथा आगे, 72-103; वेबर. इंड. स्ट्रा. 2, 337 तथा आगे
35. बु, इं. स्ट. III, 2, 7 तथा आगे 36. वही, 2, 8 तथा आगे, 120 37. वही 2, 10, 18
38. वहीं 2, 10 तथा आगे 39. वही 2, 10, 120
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