________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लेखक-उत्कीर्णक
२०७
दिवीरपति मिलती है । दिविर शब्द मध्य भारत के सन् 521-22 ई. के एक प्राक्तर अभिलेख में भी आया है ।374 यह दिविर और कोई नहीं फारसी देबीर
=लेखक ही था । ये देबीर संभवतः सासानी शासन-काल में पश्चिमी भारत में बस गये थे। इस काल में ईरान और पश्चिमी भारत के बीच व्यापारिक-संबंध बहुत बढ़ गये थे। राजतरंगिणी में भी दिविर शब्द आया है। कश्मीर के 11वीं12वीं शती के अन्य ग्रंथों में भी यह शब्द मिलता है। क्षेमेन्द्र के लोक-प्रकाश में तो इसके अनेक उपभेद जैसे गंज-दिविर, (बाजार-लेखक), ग्राम-दिविर, नगरदिविर, खवास-दिविर (?) भी मिलते हैं 1575
ऊपर जिन दो ग्रंथों का जिक्र आया है उनके अतिरिक्त अन्य तुल्यकालीन ग्रंथों में भी लेखक के लिए एक अन्य शब्द का भी व्यवहार हुआ है, वह है कायस्थ । यह शब्द पहली बार याज्ञवल्क्य-स्मृति में आया है (1, 325) । आज भी उत्तरी और पूर्वी भारत में यह काफी प्रचलित है। किंतु आज कायस्थों की एक अलग जाति ही बन गयी है। इनके बारे में ब्राह्मण-ग्रंथों का कहना है कि इनमें शूद्र-रक्त है, पर ये ऊँचे स्थान का दावा करते हैं। 76 वास्तविकता भी यह है कि प्रायः कायस्थों का काफी राजनीतिक प्रभाव रहा है। अभिलेखों में 8वीं शती से इनका उल्लेख आता है। पहला उल्लेख राजस्थान के सन् 738-39 के कणस्व अभिलेख का है77 ।
लेखकों के अन्य पदनाम जो अभिलेखों में मिलते हैं वे हैं करण578, करणिक 79, या कम प्रचलित करणिन580, शासनिक 581 और धर्मलेखिन82 । करण
574. फ्ली. गु. इं. (का. ई. ई. III), 122, पंक्ति . 7. 575 इं. ऐ. VI, 10.
576. कोलबुक, एसेज, II, 161, 169, (कावेल); बंबई के कायस्थ प्रभुओं के बारे में देखि. बॉम्बे गजेटियर XIII, 1. 87.
__577 इ. ऐ. XIX, 55; बाद में गुजरात और कलिंग में कायस्थों का वर्णन प्रायः आता है, इं. ऐ. VI, 192, सं. 1 और आगे; ए. ऐ. III, 224.
578. याज्ञवल्क्य, I, 72; वैजयंती, LXXIII, 17; CXXXVII, 23 मिला. ब्यो. रो. व्यो. 3 करण B के अंतर्गत । ____579. मिला. उदाहरणार्थ ए. ई. I, 81, 129, 166; इं. ऐ. XVI, 175; XVIII, 12.
580. हर्षचरित, 227 (निर्णयसागर संस्करण); इं. ऐ. XII. 121, .! 581. ई. ऐ. XX, 315. 582 इ. ए. XVI,L 208
207
For Private and Personal Use Only