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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २०६ भारतीय पुरालिपि - शास्त्र हास्पद हो सकता है । बाद के अनेक अभिलेखों में 89 लेखक का तात्पर्य निस्संदेह उस व्यक्ति से था जो वह प्रलेख तैयार करता था जिसे ताम्रपट्ट या पत्थर पर खोदा जाता था । किंतु आजकल लेखक उसे कहते हैं जो हस्तलिखित पुस्तकों की प्रतिलिपियाँ तैयार करता है । गरीब ब्राह्मण या बूढ़े क्लर्क ( कायस्थ, कारकून ) प्राय: इसी प्रकार अपनी जीविका चलाते हैं । जैन भी अतीत में ऐसे व्यक्तियों से काम लेते थे। आज भी लेते हैं । किंतु अनेक जैन पुस्तकों की प्रशस्तियों से विदित होता है कि ये जैन मुनियों या श्रावकों द्वारा तैयार की गयी प्रतिलिपियाँ हैं । कभी-कभी जैन साध्वियाँ भी प्रतिलिपि का कार्य करती थीं । इसी प्रकार नेपाल में हमें बौद्ध-पुस्तकों के प्रतिलिपिकारों के रूप में भिक्षुओं, वज्राचायों आदि के नाम मिलते हैं । 520 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पेशेवर लेखक का एक दूसरा नाम लिपिकर या लिबिकर था जो ई. पू. चौथी शती में भी प्रचलित था । इसका उल्लेख पूर्व पृष्ठों पर आया है । कोषों में 71 इसे लेखक का पर्याय बताया गया है । वासवदत्ता 72 में इसका अर्थ सामान्य 'लेखक' है । अशोक अपने चौदहवें आदेश- लेख में इस शब्द का उल्लेख क्लर्कों के पदनाम के रूप में करता है। इसी प्रकार पड़ भी अपने को लिपिकर करता है । यह शिद्दापुर के अशोक के आदेश-लेखों का प्रतिलिपिक है । सांची अभिलेख, स्तूप 1, सं. 49573 का दाता सुबाहित गोतिपूत अपने लिए और ऊँची पदवी राजलिपिकर धारण करता है । शायद प्राक्तर काल में लिपिकर क्लर्क का पर्याय था । सातवीं और आठवीं शती के वलभी के अनेक अभिलेखों के लेखक संधिविग्रहाधिकृत (संधि और युद्ध का मंत्री ) हैं । इनकी उपाधि दिविरपति या 569. मिला. उदाहरणार्थ पल्लव- दानपत्र, ए. ई. I, पृ. 1 तथा आगे ( अंत में ) ; फ्ली. गु. ई. ( का. ई. ई. III ) सं. 18 ( अंत में), 80 ( अंत में ), और अनुक्रमणी में लेखक के अंतर्गत फ्लीट की टिप्पणी । 570. कश्मीररिपोर्ट, 33 राजेन्द्रलाल मित्र, गॉफ के पेपर्स, 22; कीलहार्न और पीटरसन, रिपोर्ट आन दि सर्च आफ संस्कृत मनुस्क्रिप्ट्स, और बेंडेल का कै.सं. बु. म. ने. 571. देखि. उदाहरणार्थ अमरकोष, 183, श्लो. 15. बंबई सरकार संस्करण 572. हेल का संस्करण. 239. 573. ए. ई. II, 102. 206 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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