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भारतीय पुरालिपि-शास्त्र का प्रयोग उत्तरकालीन ग्रंथों में ही मिलता है। बाण (लग. 620 ई.) और उसके पूर्ववर्ती सुबंधु को इसका पता था ।538
बेनफे, हिक्स, और बेवर ने मेला (मसि के लिए दूसरा शब्द) की व्युत्पत्ति ग्रीक melas से की है। किंतु निस्संदेह यह प्राकृत विशेषण शब्द मैल= गंदा, काला का स्त्रीलिङ्ग का रूप है जो ग्रीक से नहीं आया होगा। मेला का ज्ञान सुबंधु को था। इसने मेलानंदायते नामधातु का340 प्रयोग किया है। जिसका अर्थ दावात बनता है। दावात के लिए कोषों में मेलामंदा, मेलांध, मेलांधुका और मसिमणि का और पुराणों में मसिपात्र, मसिभाँड़ और मासीकूपिका का भी प्रयोग हुआ है।541
निआर्कस और कर्टिस के इस कथन से कि हिंदू रूई के कपड़े और पेड़ की छाल यानी भूर्ज पर लिखते थे यही संभव प्रतीत होता है कि ई. पू. चौथी शती में वे स्याही का प्रयोग करते थे। अशोक के आदेशलेखों में कभी-कभी कुछ अक्षरों में फंदों के स्थान पर बिंदियाँ मिलती हैं ।542 इससे भी इसी निष्कर्ष की संभावना होती है। अंधेर के धातु-कलश पर स्याही से लिखने का सबसे प्राचीन उदाहरण मिला है (दे. ऊपर पृ. 12) यह निश्चय ही ई. पू. दूसरी शती से पुराना नहीं है । खोतान के धम्मपद और अफगानिस्तान के स्तूपों से मिले भूर्ज की रस्सी और पत्थर के बर्तन जिन पर खरोष्ठी के अक्षर हैं पहली शती और इसके बाद के हैं। प्राचीन भूर्ज और ताड़-पत्र पर ब्राह्मी में लिखे हस्तलिखित ग्रंथ इनसे भी बाद के हैं । अजंटा की गुफाओं में चित्रित अभिलेख अभी तक मिलते हैं ।543 ।
जैन अपने हस्तलिखित ग्रंथों में रंगीन स्याही का खूब प्रयोग करते हैं ।41
लिए ।
538. देखि. उदाहरणार्थ वासवदत्ता, 187, (हाल); हर्षचरित, 95.
539. जकरिया Nachrichten Gitt. Ges. Wiss 1896, पृ. 265 तथा आगे भी देखिए।
540. ब्यो. रो. व्यो. उसी शीर्षक के अंतर्गत ।
541. मंदा और नंदा, पानी का घड़ा (मिला. नदिका, नांदी, कूप और नादिपट, कूप की ढक्कन) नंदयति और मंदयति से निकले हैं ।
542. बु. ई. III, 2, 61, 69. 543. ब., आ. स. रि. वे. ई. IV, फल. 59.
544. उदाहरणार्थ देखि. राजेन्द्रलाल मित्र की नोटिसेज ऑफ संस्कृत की प्रतिकृति फल. मनुस्क्रिप्ट्स 3, फल. I.
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